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Monday 26 November 2012

मुझे गणित नहीं आती

मुझे गणित नहीं आती
रिश्तों मे जोड़-घटाना
स्नेह मे लाभ और ब्याज
मैंने नहीं सीखा
मुझे प्रेम का भूगोल
बखूबी आता है
शीत मे प्यार की धूप
गरमी मे स्नेह की छाँव
यही देना सीखा
लेकिन वापसी मे कितना
 
ब्याज मिलेगा ये अपेक्षा
ना की ना करूंगी
तुम जुड़े हो मेरे जीवन मे
तुम पर कविता रचूँगी
तुम्हारे आने की कुंवारी
आशा लिए द्वार मे नहीं
खड़ी मिलूँगी।

5 comments:

  1. वाह ... बेहतरीन

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  2. भूगोल पता रहे तो गणित खुद आ जाएगा ... सुंदर

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  3. अपना भी यही हाल है , गणित थोड़ी सी कमज़ोर है। सुन्दर रचना के लिए बधाई।
    मेरी नयी पोस्ट "10 रुपये का नोट नहीं , अब 10 रुपये के सिक्के " को भी एक बार अवश्य पढ़े । धन्यवाद
    मेरा ब्लॉग पता है :- harshprachar.blogspot.com

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  4. क्या बात है जी
    इस गणित मेँ तो बड़े बड़े बुद्धिजीवी असफल है

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