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Thursday, 3 May 2012

( अपने पिता की याद में लिखी गई एक कविता.....जो अब नहीं रहे )


 पापा याद है मुझको तुम्हारी वो बीमार आंखें
तुम्हारी टूटती साँसे, जिन्दगी थक गई जैसे,
म्रत्युं परिचय बढाने को....तुम्हारा हाँथ थामे थी...
मौनता आपकी मुझसे बहुत कुछ बात करती थी;
बढाती बात को आगे, सूर्य निद्रा में जा पहुंचा,
सांझ की थाह पाकर के, विदा क्षण भी आ पहुंचा;
तुम्हारी विदा यात्रा में ना जाने कितने कंधे थे
नहीं था बस तेरा कन्धा.. ज...ो माँ का इक सहारा था.......
पापा याद है मुझको तुम्हारी वो बीमार आंखें.....

जिन्दगी के चौराहे में मची थी लूट कुछ ऐसी...
मैं कर्जों की गठरिया ले..व्यापारी बन गई फिर भी,
दुकां पर, एक मैं पहुंची; सजी थी जो सुहागों से
मैं माँ के लिए सब लेती..सिसक सिन्दूर था बोला
है अब बेकार सब कोशिश कहाँ मेरा मिलन होगा...
पापा याद है मुझको तुम्हारी वो बीमार आंखें.................सोनिया बहुखंडी गौर

10 comments:

  1. हर्दय स्पर्शी रचना

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  2. नम आंसुओं की श्रद्धांजली

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  3. पिताश्री को दी गई आपकी मार्मिक श्रद्धांजली स्तुत्य है।

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  4. आँखें नम हो आयीं.............
    श्रद्धा सुमन.

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  5. बहुत ही मार्मिक श्रद्धांजली दी है दीदी!


    सादर

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  6. marmik shradhanjali .....bhaavuk rachana

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  7. विनम्र श्रद्धांजलि ,
    बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है | मुझे अभी भी दुःख होता है कि मैं आज तक अपने पिता के लिए कुछ नहीं लिख पाया , लेकिन आपने जो लिखा है , बधाई की पात्र हैं आप |
    मैंने इसी तरह एक माँ के लिए कुछ लिखा है , समय मिले तो पढियेगा -
    http://shroudedemotions.blogspot.in/2012/09/Vikalp.html

    सादर

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  8. marmik ...but never hurt your friends ..

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