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Friday, 25 May 2012

खुशबू अचानक फिर, तुम्हारी आई है।

जागरण करती रही,
मैं रात-भर
याद ने तेरी मुझे
सोने ना दिया,
या कहूँ कम्बखत!
स्व्प्नो के भय से
... नींद मे खुद को
नहीं खोने दिया
स्वप्न टूटे पीर
होती है बहुत,
तुमसे मिली एकांतता
टीस देती हैं बहुत,
इनसे भली यादें
तुम्हारी हैं प्रेयस
जो चल रही हैं
संग मेरे हर घड़ी
लाती हिमालय से
कभी ये सर्द रातें
और कभी मरुभूमि की,
गरम सांसें,
आज मलयज को
बहाकर लाई है ये!!
खुशबू अचानक फिर
तुम्हारी आई है
खुशबू अचानक फिर, तुम्हारी आई है।
सोनिया बहुखंडी गौड़ (25/05/2012)

7 comments:

  1. स्वप्न भय ... यादें सपनों का रूप ले लेती हैं , अच्छी रचना

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  2. बहुत ही खुबसूरत
    और कोमल भावो की अभिवयक्ति..

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  3. ऐसे ही आतीं हैं यादें.....
    अचानक......खुशबु सी लिए.....
    बहुत सुंदर.

    अनु

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  4. स्वप्न टूटने ही क्यों दें ...
    बहुत सुन्दर भाव

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  5. yadein apne sath khusboo hi lati hai......

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  6. बहुत सुन्दर भाव..

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  7. सपनो के भय से न सोना , नया है , अच्छा लगा |

    सादर

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