मैं गरीब हूँ..गलीच नहीं,
क्या हुआ के!!
मैं अमीरों के बीच नहीं, मेहनतकश हूँ,
कमाता हूँ,अपनी जिन्दगी जीता जाता हूँ,
दो मृत शरीरों ने मुझको पैदा किया,
किताबों की जगह, ये कचरे का झोला दिया
मिटटी से सना था जब पैदा हुआ,
मिटटी के बीच आज भी खड़ा,
शर्म करो भ्रष्टाचारी नेताओं...
मेरे हिस्से के अर्थ से तुमने उदर भरा,
चिंता मेरे लिए धुएं के जैसी है
जिसे मैं उडाता जाता हूँ,
मेरे कंधे में कचरे का झोला नहीं
हिंदुस्तान का भविष्य है
जिसे मैं ढ़ोता जाता हूँ---ढ़ोता जाता हूँ
सोनिया ,
ReplyDeleteरचना के भाव सुंदर हैं .... वर्तनी की कुछ त्रुटियाँ हैं यदि आप देख लें तो ...
भाविस्व ---भविष्य
भ्रस्ताचारी -- भ्रष्टाचारी
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना....शुभकामनाएं....सोनिया
ReplyDeleteसच बात कही है दीदी!
ReplyDeleteसादर
आखिरी दो पंक्तियाँ सचमुच सोचने को मजबूर करती हैं |
ReplyDeleteअब मुझे पक्का यकीन हो गया कि आप सामाजिक मुद्दों पर ज्यादा बेहतर लिखती हैं |
सादर