प्रिये आज दिखाऊँ,
चलो तुम्हे मैं...
प्रकृति के अंदाज निराले..
नदी,पुलिन और शीतल धारा
और गगन का चाँद-सितारा
आओ पाश में बांध जाएँ हम
प्रीत बना लें एक सहारा,
दूर से देखो उन पर्वत को,
अपनी प्रीत के हैं ये प्रहरी
निशा सुहानी हमें निहारे.
चाँद ले श्वासे गहरी-गहरी,
तरुवर भी साक्ष्य बने है देखो
नैनाभिराम द्रश्यों के
मिलन की बेला बीत न जा जाये.
आओ जीवन सुखांत बनाये
अब काहे की देरी------------------
चलो तुम्हे मैं...
प्रकृति के अंदाज निराले..
नदी,पुलिन और शीतल धारा
और गगन का चाँद-सितारा
आओ पाश में बांध जाएँ हम
प्रीत बना लें एक सहारा,
दूर से देखो उन पर्वत को,
अपनी प्रीत के हैं ये प्रहरी
निशा सुहानी हमें निहारे.
चाँद ले श्वासे गहरी-गहरी,
तरुवर भी साक्ष्य बने है देखो
नैनाभिराम द्रश्यों के
मिलन की बेला बीत न जा जाये.
आओ जीवन सुखांत बनाये
अब काहे की देरी------------------
सुंदर.....................
ReplyDeleteबहुत सुंदर......................
बहुत बढ़िया दीदी!
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना......सुन्दर...
ReplyDeleteबेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति.......
कविता निसंदेह बहुत सुन्दर है लेकिन सुखान्त ?
ReplyDeleteवैसे यहाँ भी लिखावट की अशुद्धियाँ हैं ,
सादर
maaf karen arun jee likhawat me to meri kabhi galti nahi hoti haa aap ye kah sakte hain ki typing me galti hai...... kavitayen meri diary me bilkul sahi vartani me likhi gai hain. aur main yahan seekh rahi hoon aur jeevan paryant seekti hi rahungi, main bahut vidwan nahi hoon.
Deletesaadar