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Saturday, 12 May 2012

ईश्वर आज फिर से जी उठा है.

स्वांत सुखाए हेतु
ईश को मैंने त्याग दिया था
या फिर ऐसा बोलूं
... प्रतिमायों को कफ़न से
ढांप दिया था।
तम के प्रति जागरूक होकर
सूरज को था ठुकराया मैंने,
कुछ दिन तक पहले
प्रेम किसी का न पाया मैंने
किन्तु इन दिनों
एक अपरिचित
प्रेम का दीप,
लिए खड़ा है,जिससे
अंधियारा मन मेरा
दीप्त हुआ है
श्वेत रंग भी हुआ गुलाबी
सुख के सदन में
ईश्वर आज खड़ा है,
जब से तुमको पाया प्रियतम
मेरी दृष्टि में
कफ़न में लिपटा ईश्वर
आज फिर से जी उठा है.
(सोनिया बहुखंडी गौर )

11 comments:

  1. अति सुन्दर रचना..

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  3. बहुत ही अच्छी कविता है।

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  4. आध्यात्मिक रचना.....

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  5. बहुत सुन्दर रचना...

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  6. बहुत सुंदर आध्यात्मिक कविता.

    बधाई इस सुंदर प्रस्तुति के लिये.

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  7. बहुत ही बढ़िया।

    सादर

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  8. कफ़न में लिपटा ईश्वर , बहुत अच्छी लगी सोच |

    सादर

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