शितिकष्ठ विश्व के कल्याण मे
कालकूट प्रतिपल पिये....
और मनुज आयुध लिए,
शिव संहार को खड़े....
भक्ति को दाहस्थल मे कर इति,
विचारों का नग्न नृत्य कर रहे।
हे! शिव अनुग्रही रूप को त्याग कर,
काव्य दंभ रत मनुष्य को,
अवग्रही रूप धर, काल के,
गर्भ मे उतार दो।
सोनिया प्रदीप गौड़
ये कविता उन के लिए जो रिश्ते की आड़ लेकर अपना फायदा पूरा करते हैं। और रिश्तों को विचारों के माध्यम से कवच हीन कर देते हैं.....
कालकूट प्रतिपल पिये....
और मनुज आयुध लिए,
शिव संहार को खड़े....
भक्ति को दाहस्थल मे कर इति,
विचारों का नग्न नृत्य कर रहे।
हे! शिव अनुग्रही रूप को त्याग कर,
काव्य दंभ रत मनुष्य को,
अवग्रही रूप धर, काल के,
गर्भ मे उतार दो।
सोनिया प्रदीप गौड़
ये कविता उन के लिए जो रिश्ते की आड़ लेकर अपना फायदा पूरा करते हैं। और रिश्तों को विचारों के माध्यम से कवच हीन कर देते हैं.....
भावपूर्ण अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteशब्दों की पैनी धार ... बहुत सही
ReplyDeleteaapka abhaar Rashmi jee
ReplyDeleteIts beautiful and bitter truth..
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