एक औरत जो सनातन है, रोज गुज़र रही है कार्बन डेटिंग से,
वह औरत ख्याल नहीं सोचती
बस बातें करती है चीकट दीवारों से
बेबस झड़ती पपड़ियों के बीच लटके बरसों पुराने कैलेंडर में अंतहीन उड़ान भरते पक्षियों से!
और हाँ, बेमकसद बने मकड़ियों के जालों से भी। उसी औरत की डायरी के पन्ने खंगाल के लाइ है मेरी कलम जो आप सबको नजर है।
गहन रचना...
ReplyDeleteस्तब्ध सच
ReplyDeletemain to tasweer mein atka rah gaya...
ReplyDeleteबेहद गहन किंतु सत्य
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