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Tuesday, 11 September 2012

प्रेम को मेरे विवादित मत बनाओ


 
 
प्रेम को मेरे विवादित मत बनाओ

जो नहीं प्रारब्ध मे उसका रुदन अब क्या करूँ?

काव्य भीगा है मेरा मर्म से

सौख्य से मंडित उसे कैसे करूँ?

दम कहाँ भर पाई उससे पूर्व तुम बैरी हुए

प्रेम की खंडित कथा, अब कहाँ किस से कहूँ?

व्याल से लिपटी निशा रचती रही अभिसंधियाँ

प्रिय बताओ अब तुम्ही,मैं त्राण कैसे करूँ?

हुआ कलुषित चित तुम्हारा,

सुरध्वनि का जल मैं लाकर शुद्ध अब कैसे करूँ?

प्रेम को मेरे विवादित मत बनाओ

 

 

8 comments:

  1. ओह वेदना का चित्रण

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  2. बहुत सुन्दर ....
    बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

    अनु

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  3. वेदना का भावपूर्ण चित्रण...

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  4. वैसे...तुम जो चाहे करो
    तुम्हारे कदम से
    न मेरा प्रेम विवादित होगा
    न मेरी ख़ामोशी मेरी व्यथा तुम्हें समझा सकेगी
    ....... यह जो है
    सिर्फ मेरा है

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  5. सच प्रेम विवादित हो जाय तो फिर प्रेम कैसा!
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति

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  6. बेहद भावपूर्ण रचना बधाई स्वीकारें

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  7. मन को छूते शब्‍द ...

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  8. वाह बेहद भाव पूर्ण रचना

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