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Tuesday, 8 May 2012

घर के बागीचे पर एक मनीप्लांट की बेल पर एक बड़े पत्ते के सहारे, उसी पत्ते के उप्पर एक नए अद्खिले पत्ते के भीतर चिड़िया रानी ने अपना घोंसला बनाया है, घोंसला टूट ना जाए इस लिए बड़े ही चुपके से ये फोटो क्लीक कर दी... उस्सी विषय पर ये रचना बन पड़ी है.....




चाय की चुस्कियां लेते समय
अचानक एक नन्ही बादमी
चिड़िया पर नजर पड़ी
जो बागीचे में लगे
मनीप्लांट की तरफ
जाती और लुप्त हो जाती!!
ना जाने फिर कहाँ से
वापस आ जाती,
एक लम्बी उडान भरती
तिनके और दानो की खोज में,
थकी और कम्पित साँसे लिए
ये क्रिया अनवरत चल रही है
छाँव के लिए उसे किसी
घने तरुवर की चाह नहीं
उसे तो बस चलते जाना है,
मन विस्मित है मेरा
मनीप्लांट में ये तिनके
ठहर पायेंगे?
जिज्ञासु मन मेरा चल पड़ा
नन्हे शिल्पी को परखने,
किन्तु यह क्या?
मनीप्लांट के बड़े,
अधखिले कोंपल को,
भीतर तिनके के बिछौने से सजाया है,
किसी को भी डाह हो जाए,
अपने नर्म गद्दों पर,
तिनके के बिस्तर पर,
तीन नवजात चूजे ची-ची
कर रहे थे, जैसे मानव शिशु
किलकारियां भरता है,
तभी चिड़िया ने तेज-तेज
ची-ची करना शुरू किया
मानो कह रही हो--
दूर हटो,मेरे घोंसले से
तुम मेरी शक्ति से परिचित नहीं
मुझमे सृजन और संहार की
क्षमता है
मैं माँ हूँ !!
ये सुन मेरा ह्रदय
मातृत्व से भर उठा
लगा चिड़िया कहाँ बोली
ये तो मैं बोली हूँ,
चिड़िया तो माध्यम है
हां उस चिड़िया में
इन दिनों मैं क्रियाशील हूँ

8 comments:

  1. सच्ची.....................
    हर रूप में माँ तो माँ है............
    बहुत सुंदर भाव सोनिया जी...
    और फोटो भी सुंदर.

    अनु

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  2. गजब का लिखी हैं दीदी !


    सादर

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  3. भाव-प्रवण कविता ।

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  4. वाह:..बहुत सुन्दर सारगर्भित रचना....सोनिया..
    सस्नेह...

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  5. बहुत भाव प्रवण रचना ...

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  6. चिड़िया तो माध्यम है और तस्वीर में हकीकत

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  7. मुझमे सृजन और संहार की क्षमता है ,
    मैं माँ हूँ |
    बहुत ही अच्छा |

    और क्या कहूँ फिर से मेरी ही चार पंक्तियाँ -
    आज सिरहाने एक हवा आयी ,
    जैसे उसकी कोई दुआ आयी ,
    वो वक्त सोचता हूँ , ठहर जाता हूँ ,
    जिस वक्त मेरी जिंदगी में माँ आयी |

    सादर

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