सोचते हैं वो!
आबरू को लूट मेरी
आज धनी बन गए
और मुझको इस
धरा मे कवचहीन
कर गए---
... आज जब घर जाएंगे
दर्पण भी लज्जित हो जाएगा
लाख ढँप लें तन को अपने
धिक्कार से भर जाएगा
आज मेरे नैन जो,
अश्रुयों से भर गए,
घर मे खड़ी माँ-बहन से
ना नैन मिला पाएगा
जो प्रीत उस पापी ने
मेरी नश्वर देह
से लगाई थी
धिक ऐसी प्रीत को
जिसने एक अबला की लाज
भरे जग लुटाई थी
हस ले पुरुष तू आज जितना
पुरुषत्व के इस् दर्प पर
अपनी नजर मे जब
तू गिरेगा-
पुरुषत्व का
ये दर्प, काँच सा चूर-चूर
हो जाएगा,
सोनिया बहुखंडी गौड़
आबरू को लूट मेरी
आज धनी बन गए
और मुझको इस
धरा मे कवचहीन
कर गए---
... आज जब घर जाएंगे
दर्पण भी लज्जित हो जाएगा
लाख ढँप लें तन को अपने
धिक्कार से भर जाएगा
आज मेरे नैन जो,
अश्रुयों से भर गए,
घर मे खड़ी माँ-बहन से
ना नैन मिला पाएगा
जो प्रीत उस पापी ने
मेरी नश्वर देह
से लगाई थी
धिक ऐसी प्रीत को
जिसने एक अबला की लाज
भरे जग लुटाई थी
हस ले पुरुष तू आज जितना
पुरुषत्व के इस् दर्प पर
अपनी नजर मे जब
तू गिरेगा-
पुरुषत्व का
ये दर्प, काँच सा चूर-चूर
हो जाएगा,
सोनिया बहुखंडी गौड़
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी सशक्त अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteक्या कहे ...
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सब खबरों के बीच एक खुशखबरी – ब्लॉग बुलेटिन
बहुत मार्मिक और संवेदन शील लिखा है जिनको शर्म या आत्मग्लानि हो वो ऐसा काम करते ही नहीं हैं भगवाव को क्या मुह दिखायेंगे ये भी नहीं सोचते
ReplyDeleteatyant maarmik...ant me apne naam ki vartani sahi kar de,,,
ReplyDeleteअत्यंत मार्मिक प्रस्तुति....
ReplyDeleteबेहद संवेदनशील और मार्मिक
ReplyDeletebahut umda rachna..........
ReplyDeleteसशक्त और सार्थक
ReplyDeleteसोनिया बहुत ही सार्थक सशक्त और मार्मिक अभिव्यक्ति....सस्नेह..
ReplyDeleteतू न फलेगा कभी
ReplyDeleteतू न हंसेगा कभी
अपने इस कृत्य से भाग मत भाग मत
बहुत सशक्त रचना , मुझे आज तक समझ नहीं आया कि इस पुरुषत्व का क्या मतलब होता है , सिर्फ नारी को पीटना या अन्य तरीकों से प्रताड़ित करना ही पुरुषत्व की परिभाषा रह जाती है क्या ?
ReplyDeleteहरगिज नहीं , लेकिन सच्चाई यही है |
सादर