जब हम मिले थे
मौनता का एक
शीर्षक था समीप
फिर मौन तेरा,
आज क्यों ?
हो गया इतना आधीर,
थे पृथक अपने रास्ते
होने लगे हैं
क्यों करीब?
है स्नेह तेरा निषकलुष
इसमे कोई शंका नहीं
फिर राग की तृष्णा
फिर राग की तृष्णा
तेरी हुई क्यों अतीव,
जब हम मिले थे----------
क्यों हृदय सागर
बन गया?
क्यों प्रीति की
वीरुध बड़ी
लगने लगा है क्यों
मुझे परिकल्पना हो
तुम मेरी?
क्यों भीति मन
मे है छुपी
जब ज्ञात है
मुझको सभी,
तुम हो नहीं सकते मेरे
इस ज़िंदगी मे कभी
जब हम मिले थे-----------------
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
ReplyDeleteआंतरिक उत्पीडन
ReplyDeleteसीधे दिल से निकले भाव,.....
ReplyDeleteबहुत अच्छी अभिव्यक्ति.
उम्दा अभिव्यक्ति।
ReplyDeletebhaut hi khubsurat abhivaykti....
ReplyDeleteक्या बात है...बहुत ही बढ़िया दीदी!
ReplyDeleteसादर
आप सभी का आभार एक पंक्ति छूट गई थी मैंने उसे ठीक कर दिया । इस बात के लिए मुझे खेद है।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कोमल भाव व्यक्त करती रचना ....
ReplyDeletemilkar na mil paane ki vyatha ko bahut khoobsurati ke sath vyakt kiya hai aapne .....
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्यक्ति में ... ।
ReplyDeleteप्रभावी द्वंदाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसादर बधाई।
प्रभावी रचना |
ReplyDeleteसादर