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Monday, 12 November 2012

जला ना पाये जो ज्ञान का दीप.....

कभी घर को बुहारा, कभी घर की दीवारों पर लगे जालों को उतारा,
जला ना पाये जो ज्ञान का दीप, कैसे करेंगे वो अज्ञानता संग गुजारा।
हृदय की कलुषता मिटा भी ना पाए, दिवाली के दीपों का लेते सहारा,
दीपों की माला तभी होगी सार्थक,अज्ञानता से कर लेंगे जब किनारा।

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर ..आप को भी दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए...

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  2. सुंदर संक्षिप्त प्यारा सन्देश

    हरे माँ लक्ष्मी हर का क्लेश

    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ...

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  3. सोनिया ऐसा ही कुछ मैंने भी लिखा था बस शब्द थोड़े से अलग हैं पर मकसद वही था । सिर्फ दिए जलाने से यह अन्धकार जो समाज की सोच पर पड़ चूका है का दूर संभव नहीं । तुमने भी बहुत सुन्दर ढंग से व्यक्त किया है ।

    अंतर्मन तिमिर भया, ह्रदय सोया राखे कोय,
    लाख दीये माटी मिले, रोशन आँगन लाख करे कोय ।
    ज्ञान दीप प्रज्वालित भया जब जब, जग रोशन होए ।।रामेश्वरी

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  4. सार्थक एवं प्रेरक प्रस्तुति

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