कोशिश तमाम की आकाश को ज़मी से मिलाने
की
यहाँ भी मुँह की खाई, खाई
थी जैसे पहले प्यार को पाने की
उनकी उलफत मे उलझे पड़े हैं हम आज
भी
ख्वाबों मे भी कोशिश
ना की उनकी यादों से दूर जाने की
जख्म-ए-जुदाई का दर्द
रातों को सताता
है
सहती रही पर कोशिश ना
की ज़िंदगी से दूर जाने की
कितने खूबसूरत पल
थे, जब आँखों से बात करते थे वो
उन पलों ने पल्ला झाड़ा, पीछे रह
गई वो बातें गुजरे जमाने की
कुछ दुनिया के झाँसो ने,कुछ रिवाजों
ने तुमको हमसे दूर किया
कसक आज भी दिल को सालती
है, तुम्हें ना पा पाने की
dard had se gujar jata hai... par chaah bani rahti hai
ReplyDeleteसोनिया जी उम्दा रचना बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना..
ReplyDeleteभावपूर्ण...
मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......
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