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Saturday, 10 November 2012

भूख की दस्तक


 
ना जाने दस्तक किधर से आ रही है?
गरीबों की खोलियों मे भूख कसमसा रही है
 
भूख को कैसे सुनाऊँ माँ की सिखाई लोरियाँ
लोरियाँ भी सिसकियों मे बदलती जा रही है
 
भूख तो अदृश्य है,देखा नहीं जिसको कभी
पेट की गलियों मे छुप कर शोर ये मचा रही है
 
 
रात की तन्हाइयों मे जाग जाती ये सदा
इसकी सदाएं आसमां के चाँद को तड़पा रही है
 
इक तरफ खामोश चूल्हा,एक तरफ बर्तन पड़े
रात की खामोशियाँ मेरे दिल को चीरे जा रही है
 
ए ख़ुदा कानों मे मेरे ये दस्तक एक चीख है
कचरे मे पड़ी रोटियाँ भूखे को मुह चिड़ा रही है
सोनिया प्रदीप गौड़
चित्र: गूगल से साभार  

12 comments:

  1. बहुत भावपूर्ण रचना |सटीक |

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  2. आह...
    मार्मिक अभिव्यक्ति....
    त्योहारों के मौसम में यूँ दुखी कर दिया ....

    चलो कुछ पल को सच भूल जाएँ और त्यौहार मनाएं...
    आपको दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं...
    सस्नेह
    अनु

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    1. aapko bhi diwali ki bahut bahut shubkaamnaen and di :)

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  3. खूबसूरत भावपूर्ण रचना दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

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  4. ye bhookh kya na karwa jaye....marmik.. dil ko chhutee hui...
    diwaaaaaaaaaaaaaaaaaali ki dheron shubhkamnayen..

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  5. रात की खामोशियाँ और भूख ..... चेष्टाओं का मंथन - हार या जीत

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति .........उम्दा पंक्ति.........................ये खुदा कानो में मेरे दस्तक एक चीख है
    कचरे में पढ़ी रोटियां भूखे को मुंह चिढ़ा रही हैं !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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  7. गहन अभिवयक्ति......

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  8. बहुत सुन्दर और गहन

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  9. bhukh ek bahut hi gahan vishay hai ..jis par tumne bakhoobi kalam chalayi hai sonia...sundar abhivaykti...

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