एक भूतिया घर !
और हम आत्माएँ
भटकती हुई,
निर्वाण हेतु संघर्षरत
श्वेद से लथपथ!
अपरिचित मुस्कान,
का होता आदान-प्रदान
किन्तु मित्रता असंभव !
कैसा है ये घर!
भूतिया घर।
दिन के उजास मे
भी,क्रोध के चमगादड़
दीवारों से चिपके रहते,
और अहम के उल्लू
हमें घूरते रहते,
मिट नहीं पाता,
रात-दिन का भेद
गलतफहमियों की स्याही
भी आस-पास फैली पड़ी है ,
सूखाने के लिए सोख्ता भी
नहीं मिलता.......
हम आत्माएँ भी
मुक्ति चाहती हैं,
तंत्र-मंत्र-यंत्र जो हो
जल्द उपचार हो जाये
और इस भूतिया घर
को मुक्ति मिल जाये
मुक्ति मिल जाये---------
सोनिया बहुखंडी गौड़
कहाँ मिल पता है मुक्ति ....
ReplyDeleteऔर सच में ये जिंदगी ये आवो-हवा भूतिया ही तो है...!!
पर जीना पड़ेगा...
बहुत बेहतरीन लिखते हो ...
आपके ब्लॉग पर पहली बार आई हूँ ...बहु उम्दा लिखा है आज कल तो
ReplyDeleteहर गली में मिल जायेंगे ऐसे भूटिया घर उत्कृष्ट लेखन के लिए बधाई
एक बेचैन आत्मा यहां भी! अच्छा लगा पढ़कर।
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