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Thursday, 11 October 2012

एक भूतिया घर !

 
एक भूतिया घर !
और हम आत्माएँ
भटकती हुई,
निर्वाण हेतु संघर्षरत
श्वेद से लथपथ!
अपरिचित मुस्कान,
का होता आदान-प्रदान
किन्तु मित्रता असंभव !
कैसा है ये घर!
भूतिया घर।
दिन के उजास मे
भी,क्रोध के चमगादड़
दीवारों से चिपके रहते,
और अहम के उल्लू
हमें घूरते रहते,
मिट नहीं पाता,
रात-दिन का भेद
गलतफहमियों की स्याही
भी आस-पास फैली पड़ी है ,
सूखाने के लिए सोख्ता भी
नहीं मिलता.......
हम आत्माएँ भी
मुक्ति चाहती हैं,
तंत्र-मंत्र-यंत्र जो हो
जल्द उपचार हो जाये
और इस भूतिया घर
को मुक्ति मिल जाये  
मुक्ति मिल जाये---------
सोनिया बहुखंडी गौड़

3 comments:

  1. कहाँ मिल पता है मुक्ति ....
    और सच में ये जिंदगी ये आवो-हवा भूतिया ही तो है...!!
    पर जीना पड़ेगा...
    बहुत बेहतरीन लिखते हो ...

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  2. आपके ब्लॉग पर पहली बार आई हूँ ...बहु उम्दा लिखा है आज कल तो
    हर गली में मिल जायेंगे ऐसे भूटिया घर उत्कृष्ट लेखन के लिए बधाई

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  3. एक बेचैन आत्मा यहां भी! अच्छा लगा पढ़कर।

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