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Wednesday, 10 October 2012

इतना कहा मेरा मान जा

क्या व्यथा है,
प्रेयसी मुझको बता,
नैन मे बहता लवण
कहता है क्या?
यदि तू कहे
तो चंद्रमा की
...
चाँदनी तेरे पग
पसारूँ..... या
निशा के रंग
को तेरे नैन
मे, मैं सवारू
सुबह को कर
दूँ विवश तेरे
आस्प खिल मे
जाये वो,
अपने हृदय की
विवशता मुझको जता।
बस दो क्षणो की
ही बात है, मैं
लौट कर फिर
आऊँगा, आशाओं
को तुम द्वार पर
रखना खड़े....
और व्यथाओं को
हुवि मे भस्म कर
सुखो की छाया
मे जा .....
इतना कहा मेरा मान जा....
सोनिया बहुखंडी गौड़

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