तुमने कहा रात समेटो
आधी समेट पाई भूल गई
खुद को समेटने लगी!
भूलने की आदत मेरी
दुनिया की सबसे बुरी बात है!
घर बिखरा है सजा देना
सबसे ज्यादा बिखरी हुई मैं थी
मैं बिस्तर सजाने लगी
एक बड़ी आपदा के बाद खिली धूप
तमाम गीले कपड़े सुखा देना तुम बोले
मै दर्द सुखाती रही।
मैं हटा देना चाहती थी
दिल मे शासन करने वाले निरंकुश को
लेकिन भूल गई।
मेरा भूलना जीवन का ज़ख्म है
मैं उस पर पपड़ी जमाना भूल गई हूं
पर तुम मुझे पूरा याद हो
इतनी भी भुलक्कड़ नही।
Soniya Bahukhandi
#औरतें
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, स्व॰ हबीब तनवीर साहब और ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDelete