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Tuesday, 5 September 2017

जूता

जूता
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लौट जाना चाहती हूँ माँ के पास
फिर से वहीं अपने पुराने मकान में
कमरे के कोने में रखा जूता  बोलता है रुको!
तुम्हारा सृजन प्रेम के लिए हुआ है...

तुमको भूरी आँखों वाले बिलौटे से डरना नहीं   बस कबूतर की तरह आँखें बंद कर लेना भींच कर

मत समेटना इस देह को.... बिखरे रहने देना
बस यही बिखरापन पसंद आएगा  उसे,
देह बिखरे सामान से ज्यादा बेहतर नजर आती है, बिखरी हुई।

कैसा  यह  सृजन?
सोचती हूँ  और कमरे के कोने में पड़ा जूता किसका ?
शायद मेरे प्रेमी का होगा।
मैं खुद उत्तर देती हूँ।

मैं  नही लौट सकती माँ के पास
उनका सृजन भी प्रेम के लिए हुआ होगा.
और उनके कमरे में भी एक बोलने वाला जूता रखा होगा।
सोनिया
#औरतें

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