Popular Posts

Monday, 4 September 2017

पलायन

गूंगे खेतों के बीच
तुम्हारा मिलना
एकांत की उम्र पार करना रहा।
बिच्छू घास का जहर
उतार लिया मैंने
जो चढ़ा था तुम्हारे होंठो से शरीर पर!

गोलियों से छलनी अकेलेपन के घायल सिपाही
तुमसे मिलने के बाद जाना
तुम बहुत बेसुरे हो
तुमको पसन्द है मिलन के गीत
जो बजते हैं मेरे कमरे में।
एक कमरा तुमको और पसन्द है
जिसकी मालकिन
खारे पानी के बीच बड़ी बड़ी आँखों  वाली
लिख रही है स्त्रीवादी कहानियां!

ओह्ह तुम मेरा प्रेम नही मन मे दबी
अभिशप्त इच्छा हो
तुम कहानियां सुनो
मैं सुनूँगी तुम्हारे हिस्से के गीत
दर्द अब मेरा सहयात्री है
मेरे होठों पर ही भी धँसे है बिच्छू घास के डंक
जो चुभे थे तुम्हारा दंश निकालने में
एकांत यूँ नहीं मरेगा वह अमर है

कुछ गोलियां मुझे भी लगी हैं
नई भर्ती है सिपाही के तौर पर मेरी
पहाड़ी सीमाओं पर।
लटकी है जहाँ तख़्ती, पलायन की।

#औरतें
Soniya Bahukhandi

3 comments:

  1. आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की १८०० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...

    ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सिसकियाँ - १८०० वीं ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete