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Monday, 30 April 2012

जिंदगी के पथ में,

 
कितना पैदल चली, इस जिंदगी के पथ में,
पीछे मुड़कर देखती हूँ, तो
सोचती हूँ!! क्या कुछ खुशियों के निशान बाकी हैं?
हाँ! रेत में बने मेरे और तुम्हारे
क़दमों के निशाँ!
जो मिट गए समय की रफ़्तार में,
...लेकिन स्मर्तियों में वो निशाँ
गाढ़े हो चले हैं...
मेरे और तुम्हारे क़दमों के निशाँ!
आज आखों में खार ही सही,
कल तक तो खुशियों के
रंग दमकते थे इन आखों में,
तुहारा सामीप्य से भोर में,
पाखी के गीत, भाव-विभोर कर जाते थे
लेकिन तुम्हारी दूरी से ,
जीवन में सलेटी रंग का धुयाँ छा गया है
आँखें स्वाद कहाँ जानती हैं,!!
लेकिन धुएं की कडुवाहट,
आँखों की पोरों में नजर आती है।
तुम नहीं हो पास प्रिये !
लेकिन तुम संग बिताये क्षण,
यादों में बदल गए हैं,
और मैं एक नन्ही बालिका में, !
और क्रीडा कर रही हूँ यादों संग
सहसा इन यादों में तुम !
चाँद बन गए,
मचल कर जल में तुम्हारा
प्रतिबिम्ब देख रही हूँ,
महसूस कर सकती हो तुमको
लेकिन जैसे ही हाँथ लगाती हूँ
तुम जल में विलीन हो जाते हो,
और इन यादों में मुझे,
एकांत कर जाते हो....एकांत कर जाते हो....

11 comments:

  1. ध्यान से पढ़ें तो एक एक लाइन अपने साथ बहा ले जाती है।

    its superb Didi.

    सादर

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  2. अद्भुत ! भावों और शब्दों का लाज़वाब संयोजन...हरेक पंक्ति अंतस को छू जाती है...

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  3. bahut sunder bhav hai.........

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  4. बहुत ही सुन्दर रचना...

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  5. उम्दा शव्दों की ताल और पंक्तियों के भाव ............क्या बात है

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  6. वाह! बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......

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  7. वाह: बहुत ही खुबसूरत अहसास.........सुन्दर रचना...

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  8. एक बार इसे पढकर वर्तनी सुधार कर लो बाबु!स्मृतियाँ,तुम्हारा,धुआँ ...टाइप करते समय अक्सर ऐसा हो जाता है.
    अहसास खूबसूरत हैं बेशक पर........ नए नही.ताज़े नही....तुम्हारे लेखन में गलती नही.शायद मैं ही कुछ ऐसा पढ़ना चाहती हूँ.पर....तुम में एक स्पार्क है, शब्दों,भावों में तपिश पैदा करना जानती हो.करो.शुभकामनाएं :)

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  9. हाँ ये तो बताओ ये बुरांस कोई फूल है? चलो कुछ तो नया जाना मैंने यहाँ आके.:)

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  10. प्यार की कविताओं में प्रयोग होने वाले भावों को बेहद आसानी से और एक अच्छे तरह से कहा गया है |

    सादर

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