जब से मिले,
बिछड़ने तक
कितने चहरे तुमने
परिवर्तित किये
कितने बहरूपिया हो तुम
मिलने से पहले
इच्छा थे मेरी,
मिले तो प्रेम
बन गए,
कितनी कसमे, कितने ही
वचन
निभाने की थाह
देकर
लुप्त हो गए,.........
और बन गए
मेरी उन्मुक्त साँसे
,
मेरी सोच की
उम्र बढाकर
और यादों में छाकर
समीर बन गए
,
और दे गए
जीने के कुछ
निर्देश ..
ऐसा नहीं की
संग नहीं तुम
आज
अभी-अभी तो
ढुलके तुम आंसू
बनके,....
नैनो की गहरे
से छलके
दर्द की तन्हाई
से मिलके
अब भी तुम्हारा
अस्तित्व
बरक़रार है...
पर जाने क्यों
?
समय के साथ
तुम्हारे
चेहरे बदल जाते
हैं............................
सच कितने बहरूपिया हो
तुम..................................
बहरूपिया होना कभी कभी मजबूरी भी होती है।
ReplyDeleteसादर
शब्दांकन और तस्वीर दोनों ही बहुत अच्छी लगीं ! बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव..............
ReplyDeleteकुछ टंकण त्रुटियाँ खटक रही हैं..ठीक कर लीजिए.
shukriya maine galtiyon ka sudhaar kar liya
Deleteh.
अच्छा लिखा है , बस टाइपिंग में कुछ गलतियाँ हैं |
ReplyDeleteसादर