क्या जूठन, क्या शुद्ध ?
उदर की ज्वाला को
जो मिल जाए शांत कर देता हूँ
अचला का बेटा हूँ
... अचला का दिया ग्रहण कर लेता हूँ
ना धिक्कार,ना ग्लानि, ना ग्लानिकर्ता!!,
पर क्रोध दर्शाता हूँ,
नींद मुझे जब आती है ,
अचला की गोद में ही सो जाता हूँ
अचला का बेटा हूँ
अचला का दिया ग्रहण कर लेता हूँ
क्या निर्धन?क्या धनी?
इसका भेद नहीं भेद पाता हूँ
अमृत की समझ कहाँ मुझको,
मैं गरल पिए जाता हूँ..
अचला का बेटा हूँ
अचला का दिया ग्रहण कर लेता हूँ
अश्रु नहीं सूख पाते मेरे,
भरी जेठ की दुपहरी में,
खुशियों की एक बूँद जो मिले,
मैं प्यास उसी से बुझाता हूँ..
अचला का बेटा हूँ
अचला का दिया ग्रहण कर लेता हूँ
(सोनिया बहुखंडी गौड़) १०/०४/२०१
उदर की ज्वाला को
जो मिल जाए शांत कर देता हूँ
अचला का बेटा हूँ
... अचला का दिया ग्रहण कर लेता हूँ
ना धिक्कार,ना ग्लानि, ना ग्लानिकर्ता!!,
पर क्रोध दर्शाता हूँ,
नींद मुझे जब आती है ,
अचला की गोद में ही सो जाता हूँ
अचला का बेटा हूँ
अचला का दिया ग्रहण कर लेता हूँ
क्या निर्धन?क्या धनी?
इसका भेद नहीं भेद पाता हूँ
अमृत की समझ कहाँ मुझको,
मैं गरल पिए जाता हूँ..
अचला का बेटा हूँ
अचला का दिया ग्रहण कर लेता हूँ
अश्रु नहीं सूख पाते मेरे,
भरी जेठ की दुपहरी में,
खुशियों की एक बूँद जो मिले,
मैं प्यास उसी से बुझाता हूँ..
अचला का बेटा हूँ
अचला का दिया ग्रहण कर लेता हूँ
(सोनिया बहुखंडी गौड़) १०/०४/२०१
ब्लॉग जगत मे आपका स्वागत है।
ReplyDeleteहमारी कामना है कि जल्द ही आपका ब्लॉग हिन्दी के बेहतर ब्लोगस की सूची मे शामिल हो।
आपकी यह पहली पोस्ट बहुत ही अच्छी लगी।
सादर
yashvant aapki mangalkaamana ke liye aabhar...
Deleteमार्मिक...
ReplyDeleteदृश्य और कविता भी...
बहुत सुंदर प्रस्तुति सराहनीय !
ReplyDeletethanks kaushi
Deleteगहन अभिवयक्ति......
ReplyDeleteक्रिकेट के माँझे हुये बल्लेबाज़ की तरह आपने अपनी पारी का आगाज किया है ! स्वागत है !
ReplyDeleteबेहद उम्दा रचना है आपकी ... बधाइयाँ और शुभकामनायें !
देश की ये हालत तो देश की आजादी के इतने बरस बाद भी है . और फिर देखो तो , कुछ लोग ये सोचते है कि क्या खाए [ इतना ज्यादा choices होती है ] और कुछ लोग ये सोचते है कि क्या खाए [ क्योंकि उन बेचारों के पास कुछ नहीं है खाने को ] ...बहुत दर्द होता है ..आपकी कविता बहुत सार्थक बन पढ़ी है . भाव बहुत ही गहरे उतारते है.
ReplyDeletebahut sundr kavita... paripakwa kavita hai...
ReplyDeleteसोनिया जी फेस बुक पर आपकी कवितायें पढ़ते रहे हैं,आपने ब्लाग का शुभारंभ कर दिया है बहुत-बहुत मुबारक हो। चित्र देख कर उसका सजीव वर्णन करने मे आपको महारत हासिल है। हमारी मंगलकामनाएं सदैव आपकी तरक्की हेतु आपके साथ हैं।
ReplyDeletesunder...bhavpurn rachna
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी .... बहुत भावपूर्ण लिखा है....
ReplyDeleteब्लॉग जगत में आपका स्वागत है। शुभकामनाएं कि आप रचनात्मकता की डगर पर आगे की ओर बढ़ती रहें..
ReplyDeleteहे भगवान ! तस्वीर और तक़दीर में कितना फर्क है ?सुन्दर और मार्मिक
ReplyDeleteअचला का बेटा हूँ ..... जो भी मिले प्रेम पूर्वक ग्रहण करता हूँ .... खूबसूरत भावों को सँजोया है ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeletekhubsurat bhaav ke sath behtareen abhivyakti...
ReplyDeleteअश्रु नहीं सूख पाते मेरे,
ReplyDeleteभरी जेठ की दुपहरी में,
खुशियों की एक बूँद जो मिले,
मैं प्यास उसी से बुझाता हूँ..
...कितनी करुणा भरी है इन पंक्तियों में ......बहुत संदर लिखती हैं आप सोनियाजी ......ब्लॉग जगत में आपका बहुत बहुत स्वागत है ......
ब्लॉग जगत मे मैं संजय भास्कर आपका स्वागत करता हूँ !
ReplyDeleteअगर लयात्मकता को दरकिनार कर दिया जाए(सिर्फ कुछ-एक जगह) तो बहुत अच्छी रचना |
ReplyDeleteइसका शीर्षक 'अचला का बेटा' भी तो हो सकता था | :)
सादर