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Wednesday, 18 April 2012

बेचैन ह्रदय

इन् दिनों बेचैन है मेरा ह्रदय
रोग असाध्य; कोई हो गया है
जिन्दगी लगने लगी लावारिस मुझे
 मौत जाने क्यों सगी सी हो गई......
 अवसर मिले प्रिये यदि तुम्हे
 आना कभी मेरे द्वार भी
और थाम लेना बाहँ मेरी,
 रूकती हुई श्वासे मेरी
विचलित करें तुमको यदि
 खोना नहीं तुम धर्य को
तुम आस हो जगती मेरी
 जीवन मैं यदि तुम आ गए
मेरी मृत्य भी टल जाएगी
विश्वास है मुझको प्रिये
नमकीन आखों में मेरी
 तेरी प्रीत जगमगाएगी
रोग साध्य भी हो जायेगा
 जो तू समीप आ जायेगा
धन्वन्तरी के रूप में
जीवन की बुझती ज्योत को
अखंड ज्योत बनाएगा....

7 comments:

  1. एक वो ही तो सब रोगों की दवा है।

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  2. बहुत बढ़िया दीदी!


    सादर

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  3. वाह!!!

    रोग साध्य भी हो जायेगा
    जो तू समीप आ जायेगा
    धन्वन्तरी के रूप में
    जीवन की बुझती ज्योत को
    अखंड ज्योत बनाएगा....

    बहुत सुंदर रचना.....

    मेरी पहले की टिप्पणी शायद स्पाम में गयी......
    अनु

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  4. उनके आने से बीमान का हाल भी अच्छा हो जाता है ... बहुत खूब ...

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  5. लाजवाब !!! बहुत सुंदर लिखती हैं आप !!!

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  6. मृत्यु मेरी टल जायेगी , बेहतरीन भाव |
    अच्छी रचना |
    सादर

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