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Saturday, 28 April 2012

तेरा स्मरण

तेरा स्मरण ना जाने क्यों बार-बार आता है....
यादों का कारवां क्यों तेरे पार्श्व को जाता है..
करते ही बंद दृष्टि क्यों तू नजर आता है
स्वप्नों मै तेरे खोकर क्यों मन मेरा आतुर.....
सानिद्य तेरा पाकर विचलित सा हो जाता है
तेरा समरण.............................................................
जब कर दिया है मैंने, मेरी यादों से तुमको खाली
क्यों अहन की छवि मै, क्यों यामिनी के तम मै
क्यों छितिज के दिए मै तू ही नजर आता है.......
तेरा स्मरण..........................................................
जब याद तेरी आये, क्यों नींद तू ले जाए?
स्वप्नों क मेरे वन मै मुझसे द्रगु चुराए......
तुझ मे मै खो गई हूँ.. आसन्न तेरे आके
सपना यही क्यों मुझको आधीर कर जाता है
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7 comments:

  1. वाह...................

    बहुत सुंदर रचना सोनिया जी....
    बहुत खूब.

    अनु

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति..

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  3. यादो की अंतहीन अभिवयक्ति.....

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  4. क्यूँ तू इस तरह साथ साथ होता है

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  5. आओ... चली आओ ह्रदय के पास, सुन लो धड़कने मेरी Bhut He Uttam Aur Sunder Prasthuti.

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  6. लिखावट की त्रुटियाँ यहाँ भी दिख रही हैं , लेकिन भाव बहुत अच्छे हैं |

    सादर

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