दो दिन दर्द के, बाद भी जब बच्चा नहीं हुआ तो माधवी रोने लगी और डॉक्टर की तरफ देख कर बोली अब बस ऑपरेशन कर दीजिए.... नहीं आज का दिन और देखेंगे, डॉक्टर मरिया बोली। ये पहला प्रसव नही था, सात साल पहले जब भारत की राजनीति का काला अध्याय, आपात काल के रूप में आया तब भी चीखी थी वह ऐसे ही किसी सरकारी अस्पताल के कमरे में। क्लोरोफॉर्म की तेज बदबू और औजारों की चुभन के बाद एक गोरा लड़का पैदा हुआ। वह तो चाहती थी कि, इंदिरा गाँधी की नसबंदी योजना में वह भी शामिल हो जाए... और दर्द से मुक्त हो जाये...लेकिन इंदिरा की योजना के साथ ही उसका ख्याल भी सफल नहीं हुआ। जबकि इंदिरा ने कहा था- "कि आपात के विरोध में कुत्ते भी नहीं भौंके" मार्च में आपात के साथ इंदिरा की तीसरी पारी समाप्त हुई पर आपात जाते जाते लोकतंत्र का सबक छोड़ गया। पर माधवी के पति के लिए कुछ नहीं छोड़ गया। ढाई साल बाद एक लड़का और पैदा हुआ।
माधवी की सोच ढीली पड़ी। दर्द फिर शुरू हुआ..... नर्स बोली ऑपरेशन करना होगा पानी पूरा निकल चूका है। डॉक्टर आई ---- और क्लोरोफॉर्म की बदबू के बाद सब लाल इस बार एक बेटी थी... दर्द के सफर में डॉक्टर ने कहा कान पकड़ अब नहीं करेगी, और माधवी ने साहस के साथ बच्चा न हो, खुद की ही नसबंदी कर वाली। इंदिरा सरकार चौथी पारी के साथ आई पर अब वो पिछली गलतियां नहीं दोहराने वाली थी। जबकि माधवी पिछली गलती करने वाली नहीं थी। दोनों औरतें साहस से पुनः सत्ता में आई।
गर्मियों के फूल खिलने लगे.... गुलमोहर दहकने लगा। अनुमेहा का आना मात्र साजिश ही थी । हालाँकि पिता वीराभ खुश थे पर कितना कौन जाने? कांग्रेस के धुर सहयोगी.... गुड़िया को घर वालों का प्यार काम पड़ोसियों का ज्यादा मिला। अचानक देश फिर जलने लगा इंदिरा की मौत के बाद.... गुस्ताखी किसी की सजा कई लोगों को मिली। बड़ी तादात में सिक्खों की बस्तियां जली। मौतें हुई। बड़ा समय लगा सत्ता को दोबारा सही होने में। बच्चे कुछ नहीं समझते। उनमें बड़े होने की होड़ लगी रहती है खासकर लड़कियों में। माँ को होश नहीं होता काम के आगे।
एक दिन अनु को पड़ोस में छोड़ा राजू की माँ के पास, वही गुड़िया खेलने लगी।
गुड़िया खाना खायेगी- राजू की माँ बोली
गुड़िया ने सहमति से सर हिलाया, ले खा ले रोटी को गोलू बनाके राजू की माँ काम करने लगी, भीतर उनका 17 साल का राजू किसी और दिमाग में था । उसने बोला माँ तुम काम करो मैं खेलता हूँ बिट्टी के साथ। उसने दरवाजा बंद कर दिया.... 4 साल की गुड़िया उस खेल को खेल ही समझती भले दर्द भरा खेल होता अगर उस दिन मां का काम न ख़त्म हुआ होता। दुर्घटना होने से बच गई। गुड़िया के शरीर में अजीब से निशान देख कर माँ ने घर बदल दिया।
अजीब बात है, औरत जिद में तब आती है जब कुछ बिखरने को होता है या बिखर जाता है। दिन काफी चुप था उस दिन, या हड़ताल पे चला गया। पर माधवी निकल गई... कडुवाहट भरी स्मृतियों के साथ। वैसे भी उसके आँचल से प्रेम भरी तितलियाँ तो तभी उड़ गई थी जब उसे पता चला था वह सभी तितलियाँ किसी और के आंचल में चली गई। ये दो बहुत बड़ी दुर्घटनाऐं थी जो उसके जीवन में घटी, वीराभ का धोखा और उसकी अनु के साथ घटी घटना जो बड़ी भी हो सकती थी। जीतने की इच्छा या हारने का भय अब उसे नहीं था।
शेष.....
एक औरत जो सनातन है, रोज गुज़र रही है कार्बन डेटिंग से, वह औरत ख्याल नहीं सोचती बस बातें करती है चीकट दीवारों से बेबस झड़ती पपड़ियों के बीच लटके बरसों पुराने कैलेंडर में अंतहीन उड़ान भरते पक्षियों से! और हाँ, बेमकसद बने मकड़ियों के जालों से भी। उसी औरत की डायरी के पन्ने खंगाल के लाइ है मेरी कलम जो आप सबको नजर है।
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Thursday, 19 January 2017
लेनिन..... एक औरत का किस्सा ( मेरी माँ में मेरा होना)
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