लेनिन--- एक औरत का किस्सा
छुट्टी ख़तम। पर ज़िन्दगी की नौकरी हमेशा चालू रहती है, मौत की तैनाती होने से पहले तक! सुख और दुःख नाम के अफ़सर समय समय पर दौरा करते रहते हैं। आज सुबह टुकड़ों टुकड़ों में आई, ख्याल आते जाते रहे धुंध की तरह। सूरज के आते ही धुंध पिघल गई। लेनिन का ख्याल नहीं आया, या मैंने आने नहीं दिया। तो लगा की मैं नदी का सुनसान किनारा हूँ। अचानक एक पुरानी कविता दराज के भीतर से फड़फडाई, मेरे लिए लिखी थी शायद, क्या वास्तव में? भगवान जाने या लेनिन।
ये जो मैं लिख रही हूँ, ये ज़िन्दगी के अनकहे ख्याल हैं जो मेरे भीतर एक जीव की तरह साँस ले रहे हैं। चूंकि मैं हूँ तो ये ख्याल हैं और मैं एक दुर्घटना का नतीजा हूँ, जिसे दो षड्यंत्रकारियों ने मिल के अंजाम दिया लेकिन जिम्मेदारी किसी ने सही से नहीं ली। ये कहानी अनुमेहा से ही शुरू होगी और क्या मालूम लेनिन ख़त्म करे इसे..... फिलहाल
मेरा जन्म, गौरांग, अनिमेष, मिली,लेनिन और मैं इस कहानी को आगे बढ़ाएंगे। ये सभी मेरे भीतर एक जीव की तरह सांस लेंगे, पलेंगे... और ख्याल बनकर कागज़ पर बिखर जायेंगे। लेनिन का सफ़ेद आध्यात्मिक ख्याल बहुत बाद में आयेगा। क्या मालूम ये लेनिन मुझ पर हावी होने की कोशिश करे। इस कहानी की कहीं कहीं सांस उखड़े स्वाभाविक है। पर उसका ही प्यार है जो संजीवनी का काम करेगा, और कहानी जी उठेगी। "मुझमे मैं" से। ये अहंकार वाला मैं नहीं ज़िन्दगी वाला मैं। और आगे के पात्र कहानी को आगे पढ़ाएंगे।
शेष....
सोनिया प्रदीप गौड़
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