लेनिन
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रात बहुत खामोश होती है। क्योंकि उसका रंग काला होता है। दर्द उसके भीतर है, पर उसका रंग कैसा होता है?कौन जाने। जब मैं रंगों पर शोध कर रही थी..... तो प्यार का रंग खोज रही थी, कभी ये रंग लाल होता कभी गुलाबी और यकीन मानियेगा कभी कभी इश्क का रंग हरा भी दिखता था, ये बात अलग है कि अस्ल रंग रूहानी होता है। जब तक इश्क़ का सही अर्थ पता चलता है, तब तक समाज इसे बाज़ारू या चरित्रहीन घोषित कर देता है। ऐसे ही उम्र के दौर में मिला था मुझे लेनिन या फिर उसे मैं।
वसंत का विज्ञापन निकला था, भोर मुट्ठी मुट्ठी भर बिखर गई मेरी खिड़की के पास.... ये बात अलग है कि वह मुझे फरवरी के अधूरे पल में मिला! उससे प्यार करना मानो गांव से प्यार करना हो, जहाँ बिखरी पड़ी है काले अंगूर की बेल, अखरोट की फुंगियों से झांकती घुगुती, बड़े बड़े पहाड़ जो धूप में नहाते ही सोने के हो जाते है। और जहाँ रात नदी की तरह बहती है। अचानक अनिमेष चिल्लाया ये तुम्हारी बिखरी चीजों से मैं बेहद परेशान हूँ, उसने मुँह टेढ़ा किया तो लेनिन के ख्याल से बाहर आई, पता लगा की मेरे जीवन में अनिमेष भी है बेहद रुखड़ा..... उसे ज़िन्दगी को जीने के रंग कभी नहीं मिले शायद..... इस लिए उसने पतझड़ के इश्तियार पढ़े।
यार तुम मुँह बना के बात क्यों करते हो, प्यार से नहीं बोल सकते,किस बात का गुस्सा है तुमको मुझसे अनु बस सोच ही पाई बोलने की हिम्मत ही नहीं हुई। अनिमेष से भी तो प्यार किया था कितना, नहीं वह प्यार नहीं मात्र आकर्षण था जैसे बर्फ गिरती है तो आकर्षण है,जैसे हीपिघली तो बस ठंडा पानी और बर्फ का आकर्षण ख़त्म तो ऐसे ही प्यार भी ख़त्म। अनमने भाव से मैं उठी बिस्तर से लेनिन को वहीँ छोड़ दिया। और चाय बना के अनिमेष को दी।
चाय पीते हुए मुझे लगता है कि दो प्यार करने वालों के बीच इतनी गहरी ख़ामोशी कैसे आ जाती है, के हमको लगता है कि वो मात्र आकर्षण था। इतने में अनिमेष नहा भी जाता है और पूजा घर में आता है जहाँ शिव फॅमिली की एक तस्वीर है, अनिमेष मुझे देखके मुँह बनाता है और पूजा करने लगता है..... अचानक मुझे लगता है कि पार्वती माता ने भी मुँह टेढ़ा किया, जिसे देखके शिव मुस्कराये.... और बोले देवी, फिक्र ना करो अभी हम है। सच में उस समय अनिमेष का टेढ़ा मुँह देख के मेरे होटों पे भी मुस्कान आ गई और मैं शिव हो गई, मानो लेनिन मुझे अब मिल ही जायेगा।
शेष......
सोनिया
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