रात की तन्हाइयों से भी डरावना था
भरोसा टूटना।
नाली के कीचड़ से ज्यादा घिनौना
अपमान की बारिश के छींटे पड़ना था
प्रेम से थोड़ा ज्यादा बेशर्म थी
नदी सी देह!
पृथ्वी से भारी उसकी दो आंखें
दो बहरूपिया संसार थे जिसमें।
घिनौने संसार को पार करके
देखने भर को ही मिल पाता था बेशर्म प्रेम का संसार!
नदी वास्तव में ज्यादा बेशर्म है
या फिर पत्नियां!
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