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Saturday, 11 November 2017

निर्वासन के बाद देहकोठरी

निर्वासन के बाद देह की कोठरी
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उसने चुना प्यार
भूख नही लगती अब उसे
पेट फूलों की पंखुड़ियों से छोटा होता है

धूप उस पर गुजरती है
वह फूल सी कुम्हला जाती है
कुम्हलाते फूलों का झड़ना पतझड़ के जीवन की परिभाषा है

पतझड़ का जीवित होते ही
बोलना
भूख बढ़ाना सीखो
बढ़ती भूख वसन्त का पुनर्जीवन होगी

अब उग रहे हैं उसकी नाभि में
सुर्ख फूल

शेष
Soniya Bahukhandi

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