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Monday, 28 May 2012

तुमने मेरा परिहास किया।






प्रेम है तुमसे

मैंने कब अस्वीकार किया!!

मैंने बस अपनी

मजबूरी से परिणय

करना,स्वीकार किया

जब भी तुम

परिक्लांत हुए!,

मेरे आँचल की

छाँव मिली,

फल इसका क्या

मुझे मिला?

तुमने! प्रेम मेरा त्याग दिया,

समझ ना पाये

क्या अब तक,

मेरी मौन मे था सब कुछ,

किन्तु छलावा था

वो सब! जिसको

तुमने ज्ञात किया

प्रेम इसे ही

कहते हैं क्या,

जब भावों का

मर्म न समझ

सके, दिल टूटा

मेरा उस क्षण

जब मुझे संघतिक

कह वार किया

जब मैंने समझाना

चाहा,तुमने मेरा परिहास किया

प्रेम है तुमसे

मैंने कब अस्वीकार किया!!

मैंने बस अपनी

मजबूरी से परिणय

करना स्वीकार किया


8 comments:

  1. बहुत कठिन है प्रेम की डगर ...

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  2. सुंदर ...
    भावों की गहन अभिव्यक्ति.....

    अनु

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  3. एहसास के भाव ..
    बहुत खूब

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  4. बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति

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  5. गहन भाव .

    सादर

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