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Wednesday 26 September 2012

एक कटाक्ष कविता

शितिकष्ठ विश्व के कल्याण मे
कालकूट प्रतिपल पिये....
और मनुज आयुध लिए,
शिव संहार को खड़े....
भक्ति को दाहस्थल मे कर इति,
विचारों का नग्न नृत्य कर रहे।
हे! शिव अनुग्रही रूप को त्याग कर,
काव्य दंभ रत मनुष्य को,
अवग्रही रूप धर, काल के,
गर्भ मे उतार दो।
सोनिया प्रदीप गौड़



ये कविता उन के लिए जो रिश्ते की आड़ लेकर  अपना फायदा पूरा करते हैं। और रिश्तों को विचारों के माध्यम से कवच हीन कर देते हैं.....

4 comments:

  1. भावपूर्ण अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर

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  2. शब्दों की पैनी धार ... बहुत सही

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