ना जाने किस अज़ाब की सज़ा पा रही हूँ
के इश्क़ की हर बाजियों को हारती जा रही हूँ
तुम्हारा फ़न मेरा दिल तोड़ने से हर बार निखरा
अपनी हस्ती को तुम्हारे आगे मिटाती जा रही हूँ
ज़िंदगी कब से गिरवी पड़ी है तुम्हारे पास
अब ब्याज पर ज़िंदगी जीती जा रही हूँ
आँखों में अश्क तुम्हारे दी हुई सौगातें हैं
इन सौगातों में खुद को डुबोती जा रही हूँ
मेरे तुम्हारे बीच रिश्ता लगभग वही है
पर पहले प्यार की तड़फ खोती जा रही हूँ
सोनिया
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन क्या आईपीएल, क्या बॉस का पारा, खेल है फ़िक्स्ड सारा - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post हे ! भारत के मातायों
latest postअनुभूति : क्षणिकाएं
Thanks for writinng
ReplyDelete