चलो गौरांग चलो
स्वप्न कहीं समाप्त ना हो जाएँ
चलो कहीं दूर चलो।
अभी ठहरें हैं अभ्र भी!
इनके उड़ने से पहले,
और मेरे दुखों के बरसने से पूर्व
चलो अपनी श्यामली का
हाथ थाम कहीं दूर चलो।
जलाती है देह को मेरी
श्मशान से आने वाली हवाएँ
क्या मालूम पुनर्जन्म में
हम मिल पाएँ या ना मिल पाएँ
स्म्रतियों के आंधियों से फसने से
बेहतर है गौरांग,
हम कहीं दूर चले।
अभी बाकी हैं यौवन की चंद सांसें
तुम्हारे और मेरे भीतर,
यौवन के गुजरने से पहले,
विषाद के स्वर गुनगुनाने से पूर्व
बेहतर है गौरांग
हम कहीं दूर चलें।
क्यूँ उलझें निशा से
बेतरतीब बिखरे ख़यालों से
या वक़्त के हवालों से
मुझे बिखरना है,
तुम्हारी आँखों में, सुलगते अधरों में
और इस देह में------
चलो गौरांग चलो
अपनी श्यामली का हाथ थाम कहीं दूर चलो
सोनिया
स्वप्न कहीं समाप्त ना हो जाएँ
चलो कहीं दूर चलो।
अभी ठहरें हैं अभ्र भी!
इनके उड़ने से पहले,
और मेरे दुखों के बरसने से पूर्व
चलो अपनी श्यामली का
हाथ थाम कहीं दूर चलो।
जलाती है देह को मेरी
श्मशान से आने वाली हवाएँ
क्या मालूम पुनर्जन्म में
हम मिल पाएँ या ना मिल पाएँ
स्म्रतियों के आंधियों से फसने से
बेहतर है गौरांग,
हम कहीं दूर चले।
अभी बाकी हैं यौवन की चंद सांसें
तुम्हारे और मेरे भीतर,
यौवन के गुजरने से पहले,
विषाद के स्वर गुनगुनाने से पूर्व
बेहतर है गौरांग
हम कहीं दूर चलें।
क्यूँ उलझें निशा से
बेतरतीब बिखरे ख़यालों से
या वक़्त के हवालों से
मुझे बिखरना है,
तुम्हारी आँखों में, सुलगते अधरों में
और इस देह में------
चलो गौरांग चलो
अपनी श्यामली का हाथ थाम कहीं दूर चलो
सोनिया
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण,आभार.
ReplyDeleteगौरांग भाई अब तो चल दिए होगे ? जन्म मृत्यु पुनर्जन्म मिलन विछोह से कोसों आगे होगे .
ReplyDeleteso nice
ReplyDeleteबहुत ही अर्थ पूर्ण शब्द अपने प्यारे से भावो को सहेजे अपनी मन्जिल तय करते है ........बहुत ही प्यारी रचना के लिए आपको बढ़ाई ............................
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