Wednesday 29 May 2013

आसमान चिट्का-चिट्का नजर आता है









Photo: तुम्हारे  जाने के बाद 
नींद किसे आती है,
स्वप्नों की साजिशें-
यादों की दुरभिसंधि ,
वियोग संग!.......
लगातार आँखें बंद कर
सोने का अभिनय
और स्वयं से परास्त हो जाना 
इन दिनों यही है जीवन 
तुम्हारे जाने के बाद।

मेरे छन्द उजाले से दूर !
कवितायें अंधेरे में रच रही हूँ,
स्मृतियों के जुलूस से,
तड़ित झंझावत सी भिड़ रही हूँ। 
महसूस करती हूँ,
तुम्हारी और मेरी उत्तेजित साँसे
निःस्तब्ध अंधकार में,
मानो थामे हो तुम मेरा हाथ,
अपने हाथ में............पर वो तुम नहीं 
मेरा एकाकी स्वांग रच रहा है 
इन दिनों यही है जीवन 
तुम्हारे जाने के बाद।

ना जाने क्यूँ
आसमान चिट्का-चिट्का नजर आता है
विरह का रंग सांवला है,
बस यही समझ आता है---
इसी सांवलेपन में ‘तुम’
झूठे पुष्प की तरह लगते हो
देवता पर चढ़ाये पुष्प की भांति
नियति देखो हम दोनों ‘झूठे फूल’ हैं 
फिर भी एक-दूसरे पर हैं समर्पित।
कैसी-कैसी सोच में जी रही हूँ,
इन दिनों यही है जीवन 
तुम्हारे जाने के बाद।

मृत्यु के जितने हैं पर्याय 
और जीवन के हैं जितने विलोम
उनको जी रही हूँ।
वियोग रेगिस्तान की जलन बन गया है,
स्वयं की ‘गुमशुदगी’ का विज्ञापन
पत्र-पत्रिका में दे रही हूँ।
क्या मालूम तुम ‘सुमेरु’ बन
मुझ ‘विदग्धा’ को ठंडक दो 
और बन जाओ मेरे लिए जीवन का पर्याय
इन दिनों यही है जीवन 
तुम्हारे जाने के बाद।
सोनिया गौड़

तुम्हारे जाने के बाद
नींद किसे आती है,
स्वप्नों की साजिशें-
यादों की दुरभिसंधि ,
वियोग संग!.......
लगातार आँखें बंद कर
सोने का अभिनय
और स्वयं से परास्त हो जाना
इन दिनों यही है जीवन
तुम्हारे जाने के बाद।

मेरे छन्द उजाले से दूर !
कवितायें अंधेरे में रच रही हूँ,
स्मृतियों के जुलूस से,
तड़ित झंझावत सी भिड़ रही हूँ।
महसूस करती हूँ,
तुम्हारी और मेरी उत्तेजित साँसे
निःस्तब्ध अंधकार में,
मानो थामे हो तुम मेरा हाथ,
अपने हाथ में............पर वो तुम नहीं
मेरा एकाकी स्वांग रच रहा है
इन दिनों यही है जीवन
तुम्हारे जाने के बाद।

ना जाने क्यूँ
आसमान चिट्का-चिट्का नजर आता है
विरह का रंग सांवला है,
बस यही समझ आता है---
इसी सांवलेपन में ‘तुम’
झूठे पुष्प की तरह लगते हो
देवता पर चढ़ाये पुष्प की भांति
नियति देखो हम दोनों ‘झूठे फूल’ हैं
फिर भी एक-दूसरे पर हैं समर्पित।
कैसी-कैसी सोच में जी रही हूँ,
इन दिनों यही है जीवन
तुम्हारे जाने के बाद।

मृत्यु के जितने हैं पर्याय
और जीवन के हैं जितने विलोम
उनको जी रही हूँ।
वियोग रेगिस्तान की जलन बन गया है,
स्वयं की ‘गुमशुदगी’ का विज्ञापन
पत्र-पत्रिका में दे रही हूँ।
क्या मालूम तुम ‘सुमेरु’ बन
मुझ ‘विदग्धा’ को ठंडक दो
और बन जाओ मेरे लिए जीवन का पर्याय
इन दिनों यही है जीवन
तुम्हारे जाने के बाद।
सोनिया गौड़




















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