तुम कांपती सर्दी हो !
और मै स्वेद से लतपथ ग्रीष्म !
कितने विचित्र मौसम है हम
एक दूसरे से....
कुछ न कुछ चाहते है
तुम्हे मुझसे प्रेम की
गर्माहट चाहिए |
ताकि तुम अपनी
ठिठुरती देह को
शांत कर सको |
मुझे तुमसे
शीतलहर की उम्मीद है
ताकि मै सुखा सकू
बेख़ौफ़ पसीने को |
हमारा प्रेम वसंत है
जिसके आगमन से
खिल उठते है बुरांस
बौराते है आम
और मिलती है कुसुम को सांस
लेकिन अलगाव पतझड़ है ,
पतझड़ ने चक्रव्यूह रच
बसंत को फसा दिया है |
अद्भुद !
पतझड़ के संग बसंत भी झड़ रहा है |
बसंत को बचाना है
तो शीत और ग्रीष्म का मिलन करना होगा
जिसके बीच बसंत खिल उठेगा
और मै स्वेद से लतपथ ग्रीष्म !
कितने विचित्र मौसम है हम
एक दूसरे से....
कुछ न कुछ चाहते है
तुम्हे मुझसे प्रेम की
गर्माहट चाहिए |
ताकि तुम अपनी
ठिठुरती देह को
शांत कर सको |
मुझे तुमसे
शीतलहर की उम्मीद है
ताकि मै सुखा सकू
बेख़ौफ़ पसीने को |
हमारा प्रेम वसंत है
जिसके आगमन से
खिल उठते है बुरांस
बौराते है आम
और मिलती है कुसुम को सांस
लेकिन अलगाव पतझड़ है ,
पतझड़ ने चक्रव्यूह रच
बसंत को फसा दिया है |
अद्भुद !
पतझड़ के संग बसंत भी झड़ रहा है |
बसंत को बचाना है
तो शीत और ग्रीष्म का मिलन करना होगा
जिसके बीच बसंत खिल उठेगा
गज़ब की प्रस्तुति है ।
ReplyDeleteshukriya vandana jee :)
ReplyDeleteबहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसुंदर रचना।
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