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Thursday, 9 May 2013

तुम कांपती सर्दी हो !

तुम कांपती सर्दी हो !
और मै स्वेद से लतपथ ग्रीष्म !
कितने विचित्र मौसम है हम
एक दूसरे से....
कुछ न कुछ चाहते है
तुम्हे मुझसे प्रेम की
गर्माहट चाहिए |
ताकि तुम अपनी
ठिठुरती देह को
शांत कर सको |
मुझे तुमसे
शीतलहर की उम्मीद है
ताकि मै सुखा सकू
बेख़ौफ़ पसीने को |


Photo: तुम कांपती सर्दी हो !
और मै स्वेद से लतपथ ग्रीष्म !
कितने विचित्र मौसम है हम 
एक दूसरे से.... 
कुछ न कुछ चाहते है 
तुम्हे मुझसे प्रेम की 
गर्माहट चाहिए |
ताकि तुम अपनी 
ठिठुरती देह को 
शांत कर सको |
मुझे तुमसे 
शीतलहर की उम्मीद है 
ताकि मै सुखा सकू 
बेख़ौफ़ पसीने को |
हमारा प्रेम वसंत है 
जिसके आगमन से 
खिल उठते है बुरांस 
बौराते है आम 
और मिलती है कुसुम को सांस 
लेकिन अलगाव पतझड़ है ,
पतझड़ ने चक्रव्यूह रच
बसंत को फसा दिया है |
अद्भुद !
पतझड़ के संग बसंत भी झड़ रहा है |
बसंत को बचाना है 
तो शीत और ग्रीष्म का मिलन करना होगा 
जिसके बीच बसंत खिल उठेगा | 
 हमारा प्रेम वसंत है
जिसके आगमन से
खिल उठते है बुरांस
बौराते है आम
और मिलती है कुसुम को सांस
लेकिन अलगाव पतझड़ है ,
पतझड़ ने चक्रव्यूह रच
बसंत को फसा दिया है |
अद्भुद !
पतझड़ के संग बसंत भी झड़ रहा है |
बसंत को बचाना है
तो शीत और ग्रीष्म का मिलन करना होगा
जिसके बीच बसंत खिल उठेगा

5 comments:

  1. गज़ब की प्रस्तुति है ।

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  2. बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति,आभार.

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  3. बहुत सुन्दर रचना...

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