Friday 17 May 2013

सब कुछ सतत होगा।



विस्मृत करूंगी पहले,
तुम्हारे साथ बिताए पलों को
आधीर रातों को,
यादों में जलते दिनों को,
अरुण के साथ स्वांग रचाती
अलस भरी भोर को,
फिर भूलूँगी तुम्हें!
सब कुछ सतत होगा।

तुम योग्य नहीं थे मेरे प्रेम के!
फिर भी तुम्हारी अयोग्यताओं को आलिंगन किया  
भुला दूँगी उन समस्त संभावनाओं को,
भावनाओं के उतेजित पलों को
उन तटस्थ पथ को,
जिनमे चले थे कभी दो जोड़ी कदम हमारे,
फिर भूलूँगी तुम्हारी अयोग्यताओं को
सब कुछ सतत होगा।

भूलना पड़ेगा मुझे
जीवित रहने की आदतों को!
उस सहमे स्पर्श को,
असपष्ट बातों को,
निषिद्ध गलियों को
जहां मिलते थे कभी बेखौफ हम!!
फिर भूलूँगी तुम्हारे जीवित प्रेम को!!
सब कुछ सतत होगा।


सीखूंगी अग्नि में जलने की तरकीबें
बादलों के लक्ष्य को भेदूंगी,
करूंगी विरह के रंगो पर शोध!
अनायास याद करूंगी तुम्हें
और मुक्त हो जाऊँगी....
मेरे जीवन के संकोच से तुम्हें भुला पाना मुश्किल है
मृत्यु की बेधड़क प्रवृति से ही भूल पाऊँगी तुमको।
अचानक भूल पाना संभव नहीं,
सब कुछ सतत होगा।
 सोनिया गौड़

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है!
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post वटवृक्ष

    ReplyDelete
  2. शांत और सुन्दर

    सादर

    ReplyDelete