Wednesday 5 September 2012

रिश्तों की मौत



रिश्ते बनते हैं
तो बिगड़ते क्यूँ हैं,
बिगड़ भी जाएँ तो
 दुख किस बात का,?
जब पता है दुनिया
के नियम कायदे...
मन की सूखी नदी भी
बाढ़ ग्रस्त हो जाती है
और कोई नहीं रह जाता
बिन बुलाई आपदा को
तारने वाला।....
ये बनना-बिगाड़ना
जनम-मरण के समान है
मुझे ही क्यूँ बिगड़ने की
मौत को सहना पड़ता है...
क्यूँ नहीं बनाया शिव ने भी
मेरे लिए कोई महा-मृत्युंजय।
इस जीवन मे कितने क्षण
मुझे जीना और मरना पड़ता है...
हाँ सच है जीती तो मैं तब हूँ
 जब रिश्ते बनते हैं......
और  मृत शैया मे चली जाती हूँ
जब रिश्ते टूट जाते हैं।

सोनिया बहुखंडी गौड़
 

12 comments:

  1. rishte bane aur ban ke har samay ke liye rah jaye... )
    aisa maha-mritunjay ... shayad sachchi aur achchhi dosti naam ka sambandh hai...
    hai na..
    ek behtareeen rachna...

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  2. उत्तम प्रस्तुति..........Sunder Rachna ..... Soniya....... !!!!!! Khub likho ISSI Tarah ...... Hamari Subhkamnay..

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  3. बेहतरीन......
    बहुत बढ़िया रचना सोनिया....

    सस्नेह
    अनु

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  4. रिश्तों मे उतार चढ़ाव की सुंदर अभिव्यक्ति....

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  5. शिक्षक दिवस पर विशेष - तीन ताकतों को समझने का सबक - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !

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  6. महा मृत्युंजय - यानि मृत्यु पर जीत
    वह तो शिव ने दिया ही
    तभी तो तर्क हैं सारे
    और सार है ...
    रिश्ते जो नहीं होते
    वे होकर भी नहीं होते
    तो उनका जुड़ना क्या
    टूटना क्या !
    रिश्ते जो पास ना होकर भी
    समझ सकें गहराई से
    वे खून के हों या पानी के
    होते ही हैं
    और वही शिव का महा मृत्युंजय है
    जैसे - तुम !

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया rashmi जी

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  7. गहन भाव लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

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  8. रश्मि जी ने अच्छा तर्क दिया है .... आपकी रचना गहन भाव लिए हुये है ।

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  9. गहन भाव लिए सुन्सर रचना..

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  10. आप सभी कब बहुत बहुत आभार,आपका स्नेह मुझे लिखने के लिए प्रेरित करता है। सदा आप लोग इसी तरह से मेरे साथ बने रहे और अपना स्नेह बनाए रखें।
    आपकी सोनिया

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