निर्वासन के बाद देह कोठरी
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माँ बोली ठीक नही तुम्हारे लिए
बिल्कुल नागफनी है वह
स्वाद भी मीठा नही
रंग शक्कर जैसा है बस उसका
उसने सुना और
अपनी आकाश जैसी बाहें फैला दी
पहाड़ तिलचट्टों जैसे शोर मचाते रहे
रातें नदियों में डूबती गईं, चाँद शर्माता रहा
रात के विदा होते ही सिमटने लगी उसकी लंबी लंबी बाहें
बिखरे पड़े थे नागफनी के दंश,
पहाड़ों पर रेंगती लाल चीटियां
झूठे आनंद की मौत अपनी ही परछाइयों में
खामोशी से देखती रही ये हादसे मेरी माँ
जिसने कहा था ठीक नही वह तुम्हारे लिए
Soniya Bahukhandi
मर्मस्पर्शी रचना
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