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Friday 30 December 2016

स्वतंत्रता

स्वतंत्रता

एक छोटी सी लड़की,
लंबे बालों वाली..... तेज आवाज करती है, और गुलेल चलाती है।
तब लगता है अब स्वतंत्रता मिल ही जायेगी।

एक औरत, घूँघट काढ़े...झूठे बर्तनों के
टकराने के शोर को, अपने मन की फुसफुसाहट से
शांत करती है.....
स्वन्त्रता प्रश्न चिन्हों के बीच कुछ ख्याल बुनते हुए...

एक बूढी, बीमार दीवारों के साथ खांसती है, चंद लोगों के बीच
जिनके सर गायब हैं.....
स्वतंत्रता अब स्वतंत्र होने को है।
सोनिया

Tuesday 27 December 2016

भगौड़ा प्रेमी और तुम

हम मिलेंगे जब,
मेरे प्रेमी " अन्धकार " को
तुम परास्त करोगे।

हम तमाम मुद्दों से ऊपर उठेंगे
स्त्री विमर्श और पुरुष मानसिकता के.....

शहर बंद होगा, खौलता सूरज समुद्र में डुबकी लगायेगा
फिरंगी सैलानियों की तरह,
संकोच की वर्जना टूटेगी।

पहाड़ों की संदूकची खुली रह जायेगी,
रुई के फाहे उड़ेंगे शीत में।
मैं ठंडा सुफेद रंग बन जाउंगी।

तुम इस वीरान शहर के
जिद्दी सागर की क़ैद से जमानत लेना।

रुई के फाहे जलने लगेंगे
और दमक के कुंदन बन जायेंगे,
जब हम मिलेंगे........
और मेरा प्रेमी भगोड़ा करार दिया जायेगा।
सोनिया बहुखंडी

Sunday 25 December 2016

देह जो नदी बन चुकी.....


देह जो नदी बन चुकी.....
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             (1)
भूख से बेदम.... किसी सड़क ने
पिघलते सूरज की आड़ में,
घसीट के फेंका....
एक ऐसी राह में जो दिन में झिझक से
सिकुड़ जाती है
और रातों में बेशर्मी से चौड़ी हो जाती है।

                (2)
वह औरत ख्याल नहीं सोचती
बस बातें करती है.... चीकट दीवारों से
बेबस झड़ती पपड़ियों के बीच लटके बरसों पुराने कैलेंडर में अंतहीन उड़ान भरते पक्षियों से!
और हाँ बेमकसद बने मकड़ियों के जालों से भी।

                  (3)
तेज धार वाली दोपहर जब, जीवन की सांझ को काटती है
वह घूरने लग जाती है रातों में  ईश्वर को, ठन्डे पक्षी के शव जैसे पड़ जाती है,
जब उछलती है उस पर किसी की देह,
वह अक्सर चूल्हे की आग से परे किसी के बदन की
भूख मिटाती है।
मृत्यु का काला रंग आर्तनाद करता है, फिर कुछ क्षणों बाद सब कुछ लाल लाल!

             (4)
रात का जहाज टूटता है, देह की नदी से टकराकर
क्षितिज गलने लगते हैं,
रंगबिरंगी रौशनी  के बीच अचानक आनंदित होकर ईश्वर आँखें मूँद लेते हैं,
वह मुस्कराती है, और हाथ बाँध के दार्शनिकता के नारंगी रंग में पुत जाती है।

                            (5)
ख्यालों , बातों  और भूख में से वह अपने लिए भूख चुनती है,
वही भूख जो उसके पेट में नारों की तरह चीखती है।

एक पुरुष जो बेहद गोपनीय है सबके लिए रातों में
पश्चिम से आता है,
औरत उसके लिए वह ख्याल, बातें और भूख तीनो छोड़ देती है,
ख्याल..... जो क्षणिक है
बातें जो बेहद उबाऊ
भूख...... किसी रिश्ते को स्खलित करने के लिए काफी है।

पुरुष भी भूख चुनता है, जो देह बन चुकी नदी में तैरना चाहती है।

Saturday 25 June 2016

चमड़े की खाल से सिली गई हूँ मैं

चमड़े की खाल से सिली गई हूँ मैं,

इसमें कुछ शारीरिक मुलाकातों को भी सिल देती हूँ।

सोचना चाहती हूँ तुमको, तुम्हारी आँखों को

पर सोच नहीं पाती,

तुम्हारे और मेरे प्रेम के बीच ख्यालों का तेज बुखार चढ़ जाता है,

मैं सिगरेट जैसी पतली उँगलियों को चिटकाती हूँ।

सोचने लगती हूँ नीच गरीबी को, जहाँ एक अधनंगी औरत,

अपनी छातियों को छिपाते हुए पिलाती है दूध नवजात को।

कुछ खौफ़नाक गिद्ध उधेड़ रहे है, ग़ुलाब की नन्ही नन्ही कलियों को।

गरीबी हासिये में, औरत या फिर गिद्ध......?

इससे आगे सोच ही नहीं पाती,

क्योंकि चमड़े की खाल से सिली गई हूँ मैं!


मैं सौंप देना चाहती हूँ तुमको चमड़े की खाल वाली देह,

जिसमें सिली हैं मैंने कुछ शारीरिक मुलाकातें

लेकिन उग्रवाद नशे की तरह फ़ैल रहा है.... सीमाओं पर!

मंदिरों की घंटियों को सुन्न कर दिया गया है, विरोध का रंग और हरा होता जा रहा है......

नन्हे बच्चे पढ़ने से पहले फेल हो रहे हैं ज़िन्दगी में.....

तुम कानों में जान बुदबुदाते हो, मैं सुनहरी मछली बन जाती हूँ,

तैरने लगती हूँ..... तुम्हारे भीतर,।

अचानक एक सुनहरे रंग वाली औरत,

खोपड़ीनुमा तट के बीचों बीच अधमरी फेंक दी जाती है!

मैं उसकी आने वाली भयानक मौत नहीं लिख पाती

क्योंकि चमड़े की खाल से सिली गई हूँ मैं!


अब मैंने इन तमाम तकलीफों को, तेज ख्यालों के बुखार में,

सिल लिया है अपनी खाल में।

अब मैं तुमको सोचना चाहती हूँ, लेकिन अब तुम मेरी खाल की सीमाओं में नहीं धंस पाते......सोच तुमपर हावी हो जाती है।

सोनिया 

Wednesday 4 May 2016

फाँसीघर

फाँसीघर के अँधेरे कमरे में, जहाँ सन्नाटा सुस्ताता है।
भय कुछ बुदबुदाता है, फंदे के बीचोबीच खड़े होकर!
चीखती हैं ना जाने कितनी अतृप्त आत्माएं,
मैली चीकट दीवारें मुझे घूरती हैं,
मौत चील के से पंख फैलाये उड़ती नजर आती है।

मेरे भीतर की शैतान लड़की, ऐसे में मौत को बाहर सड़क पर कान पकड़ के खड़ा कर देती है।
और फाँसीघर के भीतर से, लिखती है जिंदगी से लबरेज प्रेमभरी कविता!
जिसे पढ़कर तुम मुस्कराते हो।...... डर , अँधेरा, सन्नाटा,और प्रेतमुक्ति से पीड़ित आत्माएं------- तुम्हारी मुस्कराहट से मुक्त हो जाते हैं।

सोनिया