तू किस सोच मे
डूबी है माँ !
मुझको शरण दे
या मरण दे !
यही ना !
कितने युगो से
निर्वासन की मार,
मैं सहती रही,
और.... अपने अंत तक
फिर भी तेरा
वंदन किया।
आँखों से तेरे
भुवन को देखा सदा...
और तूने पुत्र के खोप मे
मेरे लिए म्रत्यु का
चयन किया...
चल सोच को त्याग कर
चिंतन को मुझ
पर छोड़ दे,
स्वीकार कर अंतिम नमन
मैं क्यूँ बनूँ
शरणार्थी !!
मैंने मरण और शरण मे
मरण का वरण किया..
अब चीर दो या
काट दो,
अस्तित्व को मेरे
मार दो...परवाह नहीं
इस जन्म के दो माह मे
मैंने सभी को....
क्षमा किया....क्षमा किया
सोनिया बहुखंडी गौड़