Wednesday, 11 September 2024

संवाद

एकांत में संवाद
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उदास काले फूलों वाली रात
उतरी पहाड़ो की देह पर
जैसी सरकती हैं जमी पर असंख्य लाल चीटियां
झूठी हँसी लिए स्नोड्राप बह रहे हैं
एक बेफिक्र नदी में!
 
तुमने कहा-
मेरा इंतज़ार कब तक?
बर्फ के पिघलने तक
ठंड से ठिठुरते हुए बोली मैं!

तुमने आंच बढ़ाई सूरज की
ग्लेशियर गलने लगे
तमाम पेंगविंस के पैरों में पड़ गए छाले
कुछ छाले मेरी जीभ पर भी हैं
जो बढ़ रहे हैं सूरज की आंच से...

मुझे लौटना है उदास फूलों के बीच
जहां मेरी पीठ पर रेंगती दिखेंगी लाल चीटियां
ठंडी झूठी हँसी नदी में पिघल चुकी होगी।
खौलता सूरज मेरे जीभ के छालों पर तपता मिलेगा

एक खामोशी तुम्हारी नसों में बहेगी
इंतज़ार कभी न खत्म होने वाला एकल विलाप है

#soniya

Monday, 23 December 2019

परमेश्वर

प्रार्थना के दौरान
वह मुझसे मिला
उसे मुझसे प्रेम हुआ

उसकी मैली कमीज के 
दो बटन टूटे थे

टिका दिया उसने अपना सर मेरे कंधे पर
वह युद्ध में हारा सैनिक था शायद!

मैंने उसे गले लगाया
और टांक दिए उसके बटन
 
उसने सर उठाया
लाल आँखे चमकी उसकी

अब वह परमेश्वर है
जो स्त्रियों के दिल को अपना
देश समझता है
सोनिया



Saturday, 16 February 2019

पुलवामा

#पुलवामा

कल से रसोई में छौंक नहीं पड़ी
उबला खाना.... जेहन में विचारों की तरह उबल रहा है
माँ कहती है मरने वाले के लिए दो बेल खाना छोड़ना पड़ता है।

कल से बेटे ने खिलौना बंदूक उठा रखी है
पूछता है किसने बनाई ये पिस्तौल
मैंने कहाँ हमने
गोलियां किसने डाली
मन ही मन बुदबुदाई "हमने"
बेटा बोला कल से पापा शांत हैं
मेरे सर को एक बार नहीं सहलाया
मैंने कहा- कई पिताओं का शोक उनके सर पर बैठा है।

भाई कहता है मुझे लाल रंग बेहद पसंद है
पर इतना भी नहीं कि
तिरंगा रंग जाए, मेरी पसंद को जीवन का अंश बनना चाहिए
मौत का नहीं!

पड़ोस की सुखिया दादी बोली
बाबू बोला था
मरूँगा नहीं मैं माई याद रखना
बस जाते समय खुद को तुम में छोड़ जाऊंगा
खामोशियाँ मत पकाना मेरे शोक में
घर के लोगों के बीच नर्म मुस्कान बो देना
जो शहीदों की मौत पर
ईश्वर की बैठक तक गूँजे।

और मैं दो बेल का खाना
छोड़े शोक मना रही हूँ
जबकि मुझे भी ईश्वर की बैठक को
सुखिया दादी की नर्म मुस्कान से विचलित करना है
मुस्काते हुए!

सोनिया गौड़

Wednesday, 30 January 2019

हंकार

सोलह कमरे हर्पणा भरी रातें
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अजीब डरावनी रातें होती हैं इन पहाड़ों में, मंगलेश डबराल की लालटेन दिखी नहीं मुझे किसी भी पहाड़ में, अब तक जितने भी देखे मैंने शायद सभी लालटेन्स कब की फूट चुकी थी। इन भयानक अंधेरों में बाघ से डर नहीं लगता था जितना झींगुरों की आवाज से लगता था। घरभूत के जागर मानो हमेशा किसी कोठरी में बजते थे.... छल, छाया और हर्पणा, रात में बंद दरवाजों के बाहर खड़े रहते हैं कि कब आधी रात को द्वार खुले और किसी का शरीर बिना किराये के रहने को मिले। अक्सर इन   आधी रातों में नींद खुल जाती थी मेरी, सातवाँ कमरा मेरा, सोलह करों में से । ग्यारह स्टूडेंट में दस कमरे स्टूडेंट को मिले थे। नौ लड़के और दो लड़कियाँ.....
कुछ लड़के कुमाऊँ के थे कुछ गढ़वाल के और मैं थी उत्तराखंड की।
कहाँ तो मैं रातों में डरती रहती की कभी किसी हर्पणा का शिकार ना हो जाऊं।

वहीँ दूर दिल्ली में इसी समय राहुल और सोनिया गांधी पर विकीलीक्स के खुलासे ने अमेरिका की पोल खोल के रख दी थी। वर्ल्ड कप में इंडिया जीत के लगभग करीब ... और इन्हीं डरावनी रातों में एक भारत की जीत की रात थी जब सारे छल छाया और हर्पणा डर से दुबक गई थी, सीटियों और पटाखों की आवाज़ें सुनकर।

तिवारी मेरे पास आया और बोला, कीर्ति मैडम प्लीज ताऊ जी से बोतल मांगो न।
मैं उन्हें हैरानी से देखते हुए बोली तिवारी सर पर मैं क्यों, अजीब नहीं लगेगा कि मैं दारू की बोतल मांगू आप लोगों के लिए, बुड्डा वैसे ही लालची है ज्यादा पैसे मांगेगा।
तिवारी जी: आप एक बार कहो तो

मैं: ओके जाती हूँ। मैं ताऊ जी के पास गई तो उनसे कहा ताऊ जी सभी बीएड वाले लड़के पार्टी चाहते है आप आर्मी कोटा निकालो, ऐसा वे सभी चाहते है। बुड्डा तिकडमी था समझ गया सब फ्री में  दावत उड़ाना चाहते हैं, डायरेक्ट मना करता तो क्रिकेट के भगवान को बुरा लगता तो उसने कहा। बेटा, असल में आज दूसरा दिन हैं,
मैं चौंकीं ताऊ जी को आज दूसरा दिन? पुरुषों में माहवारी तो ना होती मारामारी जरूर होती है।

लेकिन बुड्ढे ने कुटिल मुस्कान छोड़ते हुए अपनी बात संशोधित की हंकार पूजा करवाई है, जागरी और पंडित ने तीन दिन की केर कर रखी, यानि तीन दिन तक पूरी तरह से सात्विक रहना है। मेरी भाई की बीवी की घात है, मैंने ताई जी की तरफ देखा वो पहाड़ जैसे मौन साधे रहे, उनके चेहरे में पड़ी एक एक झुर्री पहाड़ों में मानो घने जंगल जैसी थी, उस जंगल में उनकी हंसी कच्ची नदी जैसे बहती थी।  मुझे घात या हंकार पहाड़ों में कॉंग्रेस घास की तरह फैले हुए दिखते हैं जिसमे ये पहाड़ी मेहनतकश लोग बुरी तरह फँसे हुए ।
मैं वापस लौट आई, तिवारी सर मेरे चेहरे को देखकर समझ गए थे की बात नहीं बनी।
नित्या सर तभी कुछ खोजने लगे बियांर में एक छोटी सी पोटली उनके हाथ लगी... ना जाने कितने तारे उनकी आँखों में चमके। खुद को साक्षात् भोले का भक्त बोलते थे नित्या सर.... कहते थे मैंने शव साधना सीखी हुई है। हस्त विद्या से पूरे लोगों को बाँध रखा था। तिवारी और पंचम को बोले ये गटक लो।
तिवारी सर बोले हम गोला नहीं खाते, खंबा है तो बोलो.... उन्होंने बोला खंबे का सबसे सस्ता जुगाड़ है। तिवारी सर बोले ना भाई तू ही खा पंचम ने कहा लाओ एक मैं लूँगा। थोड़ी ही देर में मेरी आँखों के सामने दो भोले पड़े थे । रात काफी हो गई थी मैंने ताई जी को कहा मुझे मेरे कमरे तक छोड़ दो। आज तक एक बात समझ नहीं आई कि जाने क्यों सारे छल दो लोगों पे हमला नहीं बोलते एक अकेले को सताने में उनको भी इंसानों जैसी महारत हासिल है।
मैं अपने कमरे में वापस आई, द्वार बंद किया.... लाइट खोल दी, ये एक इलेक्ट्रॉनिक लालटेन थी जिसे प्लग करते ही वो अँधेरे को खा जाती थी। छल हमारे आसपास हमेशा मौजूद रहता है, हम खुद उन्हें बढ़ावा देते हैं खुद को डराने के लिए।
पर मैंने फैसला कर लिया था, की मैं कैसे करके मिली को कहूँगी की तुम मेरे ही साथ डिनर करना और यहीं रोज स्टे करना। मिली मेरे ही साथ पढ़ती थी पर वो दस कदम दूर के घर पर रहती थी। यही सोचते सोचते जाने कब आँख लगी। घडी ने चार बजे का अलार्म लगाया जो मेरे रोज पढ़ने का समय था। अचानक मुझे लगा कोई फुसफुसा रहा है, क्या कोई हवा थी या आत्मा?
नहीं नहीं मैं भी ना !
माँ कहती है कि चार बजे देवताओं का समय होता है, भूतों का नहीं। ये फुसफुसाहट तो कमाल सर के कमरे से आई थी जहाँ नित्या सर बिना कुछ सोचे समझे बोल रहे थे
यार कमाल तुमको भी होता है क्या रात का सपना
कमाल सर बोले हाँ सभी को होता है। यार लगता है आज ज्यादा भाँग खा ली थी मैंने ये सपने सब ख़राब कर देते हैं।
मैं मुस्काई हद है यार रात में भूतों का डर सुबह सपने टूटने का डर ये सोलह कमरे वाला घर हर्पणा भरी रातें तो स्वप्न दोष से भी पीड़ित हैं। पास के गाँव से बाघ के गुर्राने की आवाज आई। मैं रजाई के भीतर दुबक गई और रात भर जलती हुई लालटेन को मैंने बुझा दिया क्योंकि सुबह भगवान टहलते हैं भूत नहीं।
क्रमशः

सोनिया

Thursday, 19 April 2018

निर्वासन के बाद

मेरा बेटा अक्सर पिता को पुकारता है
मैं उसे हंसिये जैसा धारधार चाँद दिखाती हूँ

चाँद की परछाई मुझ पर पड़ती है
दर्द के नीले निशान उभर आते हैं

चाँद एक पुरुष है
जो कर्कश आवाज में बोलता है
निकलो आसमानी घर से

हंसिये की खरोच से
घायल हैं मेरी हथेलियाँ
मेरा बेटा  चाँद नहीं देखता

धरती में टंके सितारे देखता है
जो मैंने काढ़े हैं
अब वो माँ पुकारता है

Wednesday, 14 March 2018

आज़ाद चिट्ठियां

आज़ाद चिट्ठियां
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उदासियों के बीच कई बच्चियों ने लिया होगा जन्म
इन बच्चियों के कहीं नहीं थे घर
इनकी माँएं पिता के बनाये घरों में रहती थीं
उनका भी कोई घर नहीं था!
ये सभी शील सुबहं थीं
जो क़ैद थीं गुड़ियाघर में
जो बाँट जोह रहीं थी उस पहली औरत का
जो जला देगी उत्तराधिकार के नियमों की गलत  संहिता

कुछ बच्चियां धड़कती रातों को पैदा हुई
इन सभी के पास घर थे खुद के
ये पिता द्वारा बनाई गईं थीं
ये पिता की गर्जनाओं को गीली शिलाओं पर लिख रही थीं
अन्धकार में बैठी ये सभी भविष्य की
उत्तराधिकारिणी होंगी, पितृसत्ता की
उनमें से कुछ
माँ कहलाएंगी
कुछ सास
इनका होना ही  निर्दोष कैदियों की जमात बढ़ाता रहना है।

कुछ बच्चियां जेल में पैदा हुईं ईश्वर की निगरानी में
ये बचपन से पढ़ रहीं थी बच निकलने के पाठ
अपनी माँओं से छुप के
सड़े गले नियमों को चलाने वाली संहिता
को जला देने वाली आग को  जलाना सीख रहीं थीं.....
सीखा इन सभी ने मुलाकातें तय करना
तमाम कैदियों के बीच
नए किस्म के घर बनाना सीखना उनकी कलाकारी थी
जहाँ शील सुबह उगी लताओं की तरह

उन्होंने तरक्की के रास्ते बनाये
उनके लिए
जो निजात दिलाएं तमाम कैदियों को
ईश्वर की निगरानी में पैदा हुई ये सभी
बच्चियाँ आज़ाद चिट्ठियां हैं जो पढ़ी जा रहीं है

इनमें ही है कोई एक वह पहली औरत
जो जला देंगी गलत नियमों की किताब।

Soniya Pradeep Gaur
Soniya Bahukhandi

Thursday, 8 March 2018

तलाकशुदा औरतें

फसल नई औरतों की
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मैंने नहीं रखा कभी सोमवार का व्रत
रूठे शिव को मनाने के लिए....
के उनके जैसा ही कोई रूठा मिले
जिसे मनाते मनाते जीवन उपवास हो जाए

कसम से मैंने कभी नहीं बताया माँ को
मुझे पसंद है दिलकश आवाज और
खिचड़ी बालों वाले
या पहाड़ों की धूप में तचे रंग में कोई एक ख़ास

कभी नहीं बांधे मैंने उस पुराने वट में
मन्नत के धागे
नहीं जलाई तुलसी के सामने धूप-बत्ती
बचपन  से सुनती रही उसकी बेचारगी की कहानी

मैंने कभी नहीं माँगा प्यार, पके आम की तरह वह मुझे अपनेआप मिला
शादी एक विकल्प की तरह थी मैंने स्वीकार किया
क्योंकि मुझे  आम कुछ खास पसंद नहीं थे
विकल्प भविष्य में मेरी आत्मा में होने वाला एक घाव है

मुझे पसंद था मेरा बचपना
जिसकी पीली फ्रॉक पर सुर्ख लाल तितलियां उड़ती थी
अब तितलियां यादों के पुराने फ्रेम में क़ैदियों की तरह छटपटाती हैं
विकल्प शादी की अल्बम में खिंचे मंडप में मन्त्र की तरह गूंजता रहता है

जाने वो कौन पहली औरत थी जिसने विकल्प स्वीकारने की नींव धरी
अब पूरी बस्ती तैयार है घायल औरतों की
उस पहली रहस्यमी औरत की खोज में रखने लगी हूँ इन दिनों मैं भी शिव का व्रत!

वो पहली औरत दफन है उसी जमीं के भीतर एक सभ्यता बनकर
जिसमे फ़ैल चुकी है उपवास करती कराहती हुई स्त्रियां
उत्खनन में उसका जीवाश्म नहीं मिलेगा
मिलेंगे सोने के सिक्के
जो पैदा करेंगे झपट्टा मारने वाले विकल्प

मैं कराहती औरतों के बीच लौटूंगी, अपना व्रत खंडित करने
मुझे भी बनना है अब पहली औरत.... जो अपने विकल्प को त्याग देगी
भले फ़ैल जाए सनसनी समाज के बियाबान जंगल में
मेरी माँ मुझे लुभाती रहे  खिचड़ी बालों वाले की रूपकथा सुनाकर।

मेरे इस नए जन्म के बाद ही फैलेगी नई बस्तियां समाज में
सुनाई जाएँगी नई औरतों की सभ्यता की कहानी
अब मैं भी आम पसन्द करने लगी हूँ।

Soniya Bahukhandi
#औरतें
Happy international womens day