Popular Posts

Wednesday, 30 January 2019

हंकार

सोलह कमरे हर्पणा भरी रातें
------------------------------------

अजीब डरावनी रातें होती हैं इन पहाड़ों में, मंगलेश डबराल की लालटेन दिखी नहीं मुझे किसी भी पहाड़ में, अब तक जितने भी देखे मैंने शायद सभी लालटेन्स कब की फूट चुकी थी। इन भयानक अंधेरों में बाघ से डर नहीं लगता था जितना झींगुरों की आवाज से लगता था। घरभूत के जागर मानो हमेशा किसी कोठरी में बजते थे.... छल, छाया और हर्पणा, रात में बंद दरवाजों के बाहर खड़े रहते हैं कि कब आधी रात को द्वार खुले और किसी का शरीर बिना किराये के रहने को मिले। अक्सर इन   आधी रातों में नींद खुल जाती थी मेरी, सातवाँ कमरा मेरा, सोलह करों में से । ग्यारह स्टूडेंट में दस कमरे स्टूडेंट को मिले थे। नौ लड़के और दो लड़कियाँ.....
कुछ लड़के कुमाऊँ के थे कुछ गढ़वाल के और मैं थी उत्तराखंड की।
कहाँ तो मैं रातों में डरती रहती की कभी किसी हर्पणा का शिकार ना हो जाऊं।

वहीँ दूर दिल्ली में इसी समय राहुल और सोनिया गांधी पर विकीलीक्स के खुलासे ने अमेरिका की पोल खोल के रख दी थी। वर्ल्ड कप में इंडिया जीत के लगभग करीब ... और इन्हीं डरावनी रातों में एक भारत की जीत की रात थी जब सारे छल छाया और हर्पणा डर से दुबक गई थी, सीटियों और पटाखों की आवाज़ें सुनकर।

तिवारी मेरे पास आया और बोला, कीर्ति मैडम प्लीज ताऊ जी से बोतल मांगो न।
मैं उन्हें हैरानी से देखते हुए बोली तिवारी सर पर मैं क्यों, अजीब नहीं लगेगा कि मैं दारू की बोतल मांगू आप लोगों के लिए, बुड्डा वैसे ही लालची है ज्यादा पैसे मांगेगा।
तिवारी जी: आप एक बार कहो तो

मैं: ओके जाती हूँ। मैं ताऊ जी के पास गई तो उनसे कहा ताऊ जी सभी बीएड वाले लड़के पार्टी चाहते है आप आर्मी कोटा निकालो, ऐसा वे सभी चाहते है। बुड्डा तिकडमी था समझ गया सब फ्री में  दावत उड़ाना चाहते हैं, डायरेक्ट मना करता तो क्रिकेट के भगवान को बुरा लगता तो उसने कहा। बेटा, असल में आज दूसरा दिन हैं,
मैं चौंकीं ताऊ जी को आज दूसरा दिन? पुरुषों में माहवारी तो ना होती मारामारी जरूर होती है।

लेकिन बुड्ढे ने कुटिल मुस्कान छोड़ते हुए अपनी बात संशोधित की हंकार पूजा करवाई है, जागरी और पंडित ने तीन दिन की केर कर रखी, यानि तीन दिन तक पूरी तरह से सात्विक रहना है। मेरी भाई की बीवी की घात है, मैंने ताई जी की तरफ देखा वो पहाड़ जैसे मौन साधे रहे, उनके चेहरे में पड़ी एक एक झुर्री पहाड़ों में मानो घने जंगल जैसी थी, उस जंगल में उनकी हंसी कच्ची नदी जैसे बहती थी।  मुझे घात या हंकार पहाड़ों में कॉंग्रेस घास की तरह फैले हुए दिखते हैं जिसमे ये पहाड़ी मेहनतकश लोग बुरी तरह फँसे हुए ।
मैं वापस लौट आई, तिवारी सर मेरे चेहरे को देखकर समझ गए थे की बात नहीं बनी।
नित्या सर तभी कुछ खोजने लगे बियांर में एक छोटी सी पोटली उनके हाथ लगी... ना जाने कितने तारे उनकी आँखों में चमके। खुद को साक्षात् भोले का भक्त बोलते थे नित्या सर.... कहते थे मैंने शव साधना सीखी हुई है। हस्त विद्या से पूरे लोगों को बाँध रखा था। तिवारी और पंचम को बोले ये गटक लो।
तिवारी सर बोले हम गोला नहीं खाते, खंबा है तो बोलो.... उन्होंने बोला खंबे का सबसे सस्ता जुगाड़ है। तिवारी सर बोले ना भाई तू ही खा पंचम ने कहा लाओ एक मैं लूँगा। थोड़ी ही देर में मेरी आँखों के सामने दो भोले पड़े थे । रात काफी हो गई थी मैंने ताई जी को कहा मुझे मेरे कमरे तक छोड़ दो। आज तक एक बात समझ नहीं आई कि जाने क्यों सारे छल दो लोगों पे हमला नहीं बोलते एक अकेले को सताने में उनको भी इंसानों जैसी महारत हासिल है।
मैं अपने कमरे में वापस आई, द्वार बंद किया.... लाइट खोल दी, ये एक इलेक्ट्रॉनिक लालटेन थी जिसे प्लग करते ही वो अँधेरे को खा जाती थी। छल हमारे आसपास हमेशा मौजूद रहता है, हम खुद उन्हें बढ़ावा देते हैं खुद को डराने के लिए।
पर मैंने फैसला कर लिया था, की मैं कैसे करके मिली को कहूँगी की तुम मेरे ही साथ डिनर करना और यहीं रोज स्टे करना। मिली मेरे ही साथ पढ़ती थी पर वो दस कदम दूर के घर पर रहती थी। यही सोचते सोचते जाने कब आँख लगी। घडी ने चार बजे का अलार्म लगाया जो मेरे रोज पढ़ने का समय था। अचानक मुझे लगा कोई फुसफुसा रहा है, क्या कोई हवा थी या आत्मा?
नहीं नहीं मैं भी ना !
माँ कहती है कि चार बजे देवताओं का समय होता है, भूतों का नहीं। ये फुसफुसाहट तो कमाल सर के कमरे से आई थी जहाँ नित्या सर बिना कुछ सोचे समझे बोल रहे थे
यार कमाल तुमको भी होता है क्या रात का सपना
कमाल सर बोले हाँ सभी को होता है। यार लगता है आज ज्यादा भाँग खा ली थी मैंने ये सपने सब ख़राब कर देते हैं।
मैं मुस्काई हद है यार रात में भूतों का डर सुबह सपने टूटने का डर ये सोलह कमरे वाला घर हर्पणा भरी रातें तो स्वप्न दोष से भी पीड़ित हैं। पास के गाँव से बाघ के गुर्राने की आवाज आई। मैं रजाई के भीतर दुबक गई और रात भर जलती हुई लालटेन को मैंने बुझा दिया क्योंकि सुबह भगवान टहलते हैं भूत नहीं।
क्रमशः

सोनिया

No comments:

Post a Comment