सोचते हैं वो!
आबरू को लूट मेरी
आज धनी बन गए
और मुझको इस
धरा मे कवचहीन
कर गए---
... आज जब घर जाएंगे
दर्पण भी लज्जित हो जाएगा
लाख ढँप लें तन को अपने
धिक्कार से भर जाएगा
आज मेरे नैन जो,
अश्रुयों से भर गए,
घर मे खड़ी माँ-बहन से
ना नैन मिला पाएगा
जो प्रीत उस पापी ने
मेरी नश्वर देह
से लगाई थी
धिक ऐसी प्रीत को
जिसने एक अबला की लाज
भरे जग लुटाई थी
हस ले पुरुष तू आज जितना
पुरुषत्व के इस् दर्प पर
अपनी नजर मे जब
तू गिरेगा-
पुरुषत्व का
ये दर्प, काँच सा चूर-चूर
हो जाएगा,
सोनिया बहुखंडी गौड़
आबरू को लूट मेरी
आज धनी बन गए
और मुझको इस
धरा मे कवचहीन
कर गए---
... आज जब घर जाएंगे
दर्पण भी लज्जित हो जाएगा
लाख ढँप लें तन को अपने
धिक्कार से भर जाएगा
आज मेरे नैन जो,
अश्रुयों से भर गए,
घर मे खड़ी माँ-बहन से
ना नैन मिला पाएगा
जो प्रीत उस पापी ने
मेरी नश्वर देह
से लगाई थी
धिक ऐसी प्रीत को
जिसने एक अबला की लाज
भरे जग लुटाई थी
हस ले पुरुष तू आज जितना
पुरुषत्व के इस् दर्प पर
अपनी नजर मे जब
तू गिरेगा-
पुरुषत्व का
ये दर्प, काँच सा चूर-चूर
हो जाएगा,
सोनिया बहुखंडी गौड़