क्या उत्तर दूँ जग को मैं
कौन हृदय मे बसता है
आतुर,विकल नयन मे,
एक स्वप्न तुम्हारा सजता है।
तुम दुर्लभ से लगते हो क्यूँ?
...जैसे मुझे मिल ना पाओगे,
शूलों से भर हुआ जीवन
पुष्पों से सजा ना पाओगे
कौन हृदय मे बसता है
आतुर,विकल नयन मे,
एक स्वप्न तुम्हारा सजता है।
तुम दुर्लभ से लगते हो क्यूँ?
...जैसे मुझे मिल ना पाओगे,
शूलों से भर हुआ जीवन
पुष्पों से सजा ना पाओगे
मैं गंगा बनकर आती हूँ
के प्यास बुझा लो तुम अपनी
तुम सागर तट पर जाते हो
क्यूँ प्यास बुझाने को अपनी ?!!!!
मैंने अपने गीत समर्पित
कर डाले जाने क्यूँ तुमको ?
प्रीत की रीत निभा ना पाये
क्या गीत ना भाए मेरे तुमको?
जेठ की घाम भी क्या सोखेगी
मेरे बहते नीर को,
जब तुम दिल से ही ना समझे
मेरे हृदय की पीर को,
क्या उत्तर दूँ जग को मैं
कौन हृदय मे बसता है.
सोनिया
मैं गंगा बनकर आती हूँ
ReplyDeleteके प्यास बुझा लो तुम अपनी
तुम सागर तट पर जाते हो
क्यूँ प्यास बुझाने को अपनी ?!!!!
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ... सुंदर रचना
बहुत बहुत सुन्दर रचना सोनिया...
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी हमें.
सस्नेह
अनु
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (19-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
सुन्दर भाव पूर्ण रचना ...
ReplyDeleteबधाई !
बहुत ही कोमल भावपूर्ण रचना।।।
ReplyDelete:-)
क्या उत्तर दूं जग को..कौन हृदय में बसता है...भावपूर्ण प्रस्तुति
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