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Monday, 31 December 2012

प्रियतम तुम क्यूँ आए मेरे जीवन मे?
जब मिल ना पाये मुझ मे तुम 
ना नैन मिले ना अधर मिले 
ना साँसो का हुआ मधुर मिलन 
प्रियतम तुम क्यूँ आए मेरे जीवन मे,
जब मिल ना पाये मुझ मे तुम। 
ना काँटे पथ से हटा सकी 
ना खुद को ही मैं मिटा सकी॰ 


एक अधूरेपन.... की पीड़ा से 
लथपथ है, जाने क्यूँ मन,
प्रियतम तुम क्यूँ आए मेरे जीवन मे,
जब मिल ना पाये मुझ मे तुम 
मन की प्यास कहाँ बुझती है...?.
साँसे तुम बिन हैं मद्धम 
दिन जैसे-तैसे कट जाता 
निशा मे यादों का कृंदन 
प्रियतम तुम क्यूँ आए मेरे जीवन मे,
जब मिल ना पाये मुझ मे तुम 
सोनिया बहुखंडी गौड़

 

2 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर लिखा है..

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  2. ' न खुद को ही मैं मिटा सकी '
    खूबसूरत एहसास |
    जब मालूम होता है कि हमने उस एहसास को व्यर्थ ही गँवा दिया , फिर अफ़सोस यही होता है कि 'तुम क्यूँ आये मेरे जीवन में' |

    सादर

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