Tuesday 24 January 2017

औरत

औरत....

चित्रकार लड़की ने कैनवास पर
ख्वाब का चित्र बनाया...
चूंकि मार्डन आर्ट थी पिता ने
शादी समझा!

उसने शादी को जब कैनवास पर
उकेरा....
एक आदमखोर शेर की तस्वीर उभर आई
जिसके मुख से टपक रहा था ताजा रक्त!

जब उसने आज़ादी का चित्र बनाया
तो लोगों ने उसे चरित्रहीन करार दिया।

अब जब भी वह चरित्रहीन खुद का चित्र बनाती है
तो लोग कहते हैं ये तो औरत है!

Soniya Bahukhandi

Thursday 19 January 2017

लेनिन..... एक औरत का किस्सा ( मेरी माँ में मेरा होना)

दो दिन दर्द के, बाद भी जब बच्चा नहीं हुआ तो माधवी रोने लगी और डॉक्टर की तरफ देख कर बोली अब बस ऑपरेशन कर दीजिए.... नहीं आज का दिन और देखेंगे, डॉक्टर मरिया बोली।  ये पहला प्रसव नही था, सात साल पहले जब भारत की राजनीति का काला अध्याय, आपात काल के रूप में आया तब भी चीखी थी वह ऐसे ही किसी सरकारी अस्पताल के कमरे में। क्लोरोफॉर्म की तेज बदबू और औजारों की चुभन के बाद एक गोरा लड़का पैदा हुआ। वह तो चाहती थी कि, इंदिरा गाँधी की नसबंदी योजना में वह भी शामिल हो जाए... और दर्द से मुक्त हो जाये...लेकिन इंदिरा की योजना के साथ ही उसका ख्याल भी सफल नहीं हुआ। जबकि इंदिरा ने कहा था- "कि आपात के विरोध में कुत्ते भी नहीं भौंके"  मार्च में आपात के साथ इंदिरा की तीसरी पारी समाप्त हुई पर आपात जाते जाते लोकतंत्र का सबक छोड़ गया। पर माधवी के पति के लिए कुछ नहीं छोड़ गया। ढाई साल बाद एक लड़का और पैदा हुआ।
माधवी की सोच ढीली पड़ी। दर्द फिर शुरू हुआ..... नर्स बोली ऑपरेशन करना होगा पानी पूरा निकल चूका है। डॉक्टर आई ---- और क्लोरोफॉर्म की बदबू के बाद सब लाल इस बार एक बेटी थी... दर्द के सफर में डॉक्टर ने कहा कान पकड़ अब नहीं करेगी, और माधवी ने साहस के साथ बच्चा न हो, खुद की ही नसबंदी कर वाली। इंदिरा सरकार चौथी पारी के साथ आई पर अब वो पिछली गलतियां नहीं दोहराने वाली थी। जबकि माधवी पिछली गलती करने वाली नहीं थी। दोनों औरतें साहस से पुनः सत्ता में आई।
गर्मियों के फूल खिलने लगे.... गुलमोहर दहकने लगा। अनुमेहा का आना मात्र साजिश ही थी । हालाँकि पिता वीराभ खुश थे पर कितना कौन जाने? कांग्रेस के धुर सहयोगी.... गुड़िया को घर वालों का प्यार काम पड़ोसियों का ज्यादा मिला। अचानक देश फिर जलने लगा इंदिरा की मौत के बाद....  गुस्ताखी किसी की सजा कई लोगों को मिली। बड़ी तादात में सिक्खों की बस्तियां जली। मौतें हुई। बड़ा समय लगा सत्ता को दोबारा सही होने में। बच्चे कुछ नहीं समझते। उनमें बड़े होने की होड़ लगी रहती है खासकर लड़कियों में। माँ को होश नहीं होता काम के आगे।
एक दिन अनु को पड़ोस में छोड़ा राजू की माँ के पास, वही गुड़िया खेलने लगी।
गुड़िया खाना खायेगी- राजू की माँ बोली
गुड़िया ने सहमति से सर हिलाया, ले खा ले रोटी को गोलू बनाके राजू की माँ काम करने लगी, भीतर उनका 17 साल का राजू किसी और दिमाग में था । उसने बोला माँ तुम काम करो मैं खेलता हूँ बिट्टी के साथ। उसने दरवाजा बंद कर दिया.... 4 साल की गुड़िया उस खेल को खेल ही समझती भले दर्द भरा खेल होता अगर उस दिन मां का काम न ख़त्म हुआ होता।  दुर्घटना होने से बच गई। गुड़िया के शरीर में अजीब से निशान देख कर माँ ने घर बदल दिया।
     अजीब बात है, औरत जिद में तब आती है जब कुछ बिखरने को होता है या बिखर जाता है। दिन काफी चुप था उस दिन, या हड़ताल पे चला गया। पर माधवी निकल गई... कडुवाहट भरी स्मृतियों के साथ। वैसे भी उसके आँचल से प्रेम भरी तितलियाँ तो तभी उड़ गई थी जब उसे पता चला था वह सभी तितलियाँ किसी और के आंचल में चली गई। ये दो बहुत बड़ी दुर्घटनाऐं थी जो उसके जीवन में घटी, वीराभ का धोखा और उसकी अनु के साथ घटी घटना जो बड़ी भी हो सकती थी। जीतने की इच्छा या हारने का भय अब उसे नहीं था।
शेष.....

लेनिन

लेनिन--- एक औरत का किस्सा

       छुट्टी ख़तम। पर ज़िन्दगी की नौकरी हमेशा चालू रहती है, मौत की तैनाती होने से पहले तक! सुख और दुःख नाम के अफ़सर समय समय पर दौरा करते रहते हैं। आज सुबह टुकड़ों टुकड़ों में आई, ख्याल आते जाते रहे धुंध की तरह। सूरज के आते ही धुंध पिघल गई। लेनिन का ख्याल नहीं आया, या मैंने आने नहीं दिया। तो लगा की मैं   नदी का सुनसान किनारा हूँ। अचानक एक पुरानी कविता दराज के भीतर से फड़फडाई, मेरे लिए लिखी थी शायद, क्या वास्तव में?  भगवान जाने या लेनिन।
        ये जो मैं लिख रही हूँ, ये ज़िन्दगी के अनकहे ख्याल हैं जो मेरे भीतर एक जीव की तरह साँस ले रहे हैं। चूंकि मैं हूँ तो ये ख्याल हैं और मैं एक दुर्घटना का नतीजा हूँ, जिसे दो षड्यंत्रकारियों ने मिल के अंजाम दिया लेकिन जिम्मेदारी किसी ने सही से नहीं ली। ये कहानी अनुमेहा से ही शुरू होगी और क्या मालूम लेनिन ख़त्म करे इसे..... फिलहाल
       मेरा जन्म, गौरांग, अनिमेष, मिली,लेनिन और मैं इस कहानी को आगे बढ़ाएंगे। ये सभी मेरे भीतर एक जीव की तरह सांस लेंगे, पलेंगे... और ख्याल बनकर कागज़ पर बिखर जायेंगे। लेनिन का सफ़ेद आध्यात्मिक ख्याल बहुत बाद में आयेगा। क्या मालूम ये लेनिन मुझ पर हावी होने की कोशिश करे। इस कहानी की कहीं कहीं सांस उखड़े स्वाभाविक है। पर उसका ही प्यार है जो संजीवनी का काम करेगा, और कहानी जी उठेगी। "मुझमे मैं" से। ये अहंकार वाला मैं नहीं ज़िन्दगी वाला मैं। और आगे के पात्र कहानी को आगे पढ़ाएंगे।
शेष....
सोनिया प्रदीप गौड़

Saturday 14 January 2017

लेनिन...... एक औरत का किस्सा (2)

लेनिन-- (2)
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       देवताओं की रात्रि समाप्त हो चुकी है, सूरज अपने नए रूप में उत्तरायण में प्रवेश कर चुका है.... देवताओं की भोर छलनी से छन छन कर फ़ैल चुकी है। सुना है अब रातें हलकी हो जाएंगी, और दिन भारी।  मेरे लिए तो दोनों बराबर हैं क्योंकि अनिमेष का मुँह अब गुस्से में सूजने लगा है और मैंने आज ध्यान से देखा तो पार्वती का मुँह भी अब सूज रहा था, बेचारे शिव बेचारगी में अभी तलक मुस्करा रहे थे, और उनकी बेचारगी मुझे खुद की बेचारगी से बड़ी लग रही थी। चूंकि मैं जिस शहर में थी वह भीड़ से तो भरा था पर अकेलेपन की। एक मैं और आ गई इसका अकेलापन बढ़ाने के लिए। दो लोगो की बीच पसरी चुप्पी से आया ये अकेलापन, मुझे हवा की तरह आवारा बना देता है। भटकने लगती हूँ मैं.... लगता है कि, लेनिन के आँखें मुझसे मिले, और उसकी देह में मेरी मौत हो जाए।

       ये उत्तरायण एक अफवाह है, अभी तक तो रातें यूँ ही लंबी लंबी दिख रही हैं। कल एक दोस्त ने कहा कि सात रंगों को घुमाया जाए तो सिर्फ सफेद दीखता है, लेनिन का प्रेम सफेद नहीं हो सकता उसके बिना जिंदगी बिना रंग की जरूर है। मैं कैसा जीवन जी रही हूँ? मुझे नहीं मालूम, अचानक फ़ोन बजा, ये मिली थी। जो बेरंग ज़िन्दगी से मुक्त हो चुकी थी, महिला सशक्तिकरण के राष्ट्रगान में उसने भी खूब अपनी बेज्जती की धुन सुनी। उसके पति ने उसके जीवन में शायद ही कभी कोई अच्छा सा प्रेमगीत गाया हो। ये साइकिल वाला शख्स क्यों चला रहा है ये साइकिल जब महिला हर जगह समझौते कर रही है। वह समझौते कर रही है क्योंकि वह आत्मनिर्भर नहीं... समाज उसके लिए गाली तैयार रखता है अगर वह शादी के बाद , अपनी नीरस जिंदगी में आये कुछ अच्छे प्रेमगीत गुनगुनाये! 'चरित्रहीन मिली'

       मैं भी चरित्रहीन हूँ क्योंकि मैंने भी प्रेमगीत गुनगुनाने की कोशिश की है। लेकिन मिली को लेनिन नहीं पसंद,क्योंकि  मुझसे उम्र में बड़ा और काफी परिपक्व है। मैं मिली को बताती भी नहीं की लेनिन अब मेरा ख्याल नहीं हकीकत बन चुका है पर चुप रह जाती हूँ। क्योंकि मिली जानती है कोई और भी है जो अनु को टूट टूट के प्यार करता है, "गौरांग" पर वह भी एक झूठ है बहुत बड़ा झूठ! अब सच है तो सिर्फ लेनिन। अचानक मेरे ख्याल को सुनकर पार्वती के मुंह में मुस्कान आई जो शायद अब शिव को अच्छी नहीं लगी क्योंकि चरित्रहीन महिला किसी भी पुरुष को नहीं पसंद। पुरुष दबंग महिलाओं से  डरता है और चुहिया टाइप औरतों को चूहेदानी में बंद कर देता है जबकि उसका नाम चूहेदानी है। खैर शिव जी आपको उत्तरायण की बहुत बहुत शुभकामनाएं और चूंकि मैं असुर गण की हूँ तो मैं दक्षिणायन में ही खुश हूँ। कल लेनिन को पूछना पड़ेगा की वह मेरे सात इस राशि में खुश है या नहीं?  आज शिव का मुँह टेढ़ा है और पार्वती और गणेश मुस्करा रहे हैं।

शेष......
सोनिया

Friday 13 January 2017

लेनिन.... एक औरत का किस्सा

लेनिन
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       रात बहुत खामोश होती है। क्योंकि उसका रंग काला होता है। दर्द उसके भीतर है, पर उसका रंग कैसा होता है?कौन जाने। जब मैं रंगों पर शोध कर रही थी..... तो प्यार का रंग खोज रही थी, कभी ये रंग लाल होता कभी गुलाबी और यकीन मानियेगा कभी कभी इश्क का रंग हरा भी दिखता था, ये बात अलग है कि अस्ल रंग रूहानी होता है। जब तक इश्क़ का सही अर्थ पता चलता है, तब तक समाज इसे बाज़ारू या चरित्रहीन घोषित कर देता है।  ऐसे ही उम्र के दौर में मिला था मुझे लेनिन या फिर उसे मैं।

       वसंत का विज्ञापन निकला था, भोर मुट्ठी मुट्ठी भर बिखर गई मेरी खिड़की के पास.... ये बात अलग है कि वह मुझे फरवरी के अधूरे पल में मिला! उससे प्यार करना मानो गांव से प्यार करना हो, जहाँ बिखरी पड़ी है काले अंगूर की बेल, अखरोट की फुंगियों से झांकती घुगुती, बड़े बड़े पहाड़ जो धूप में नहाते ही सोने के हो जाते है। और जहाँ रात नदी की तरह बहती है। अचानक अनिमेष चिल्लाया ये तुम्हारी बिखरी चीजों से मैं बेहद परेशान हूँ, उसने मुँह टेढ़ा किया तो लेनिन के ख्याल से बाहर आई, पता लगा की मेरे जीवन में अनिमेष भी है बेहद रुखड़ा..... उसे ज़िन्दगी को जीने के रंग कभी नहीं मिले शायद..... इस लिए उसने पतझड़ के इश्तियार पढ़े।

       यार तुम मुँह बना के बात क्यों करते हो, प्यार से नहीं बोल सकते,किस बात का गुस्सा है तुमको मुझसे अनु बस सोच ही पाई बोलने की हिम्मत ही नहीं हुई। अनिमेष से भी तो प्यार किया था कितना, नहीं वह प्यार नहीं मात्र आकर्षण था जैसे बर्फ गिरती है तो आकर्षण है,जैसे हीपिघली तो बस ठंडा पानी और बर्फ का आकर्षण ख़त्म तो ऐसे ही प्यार भी ख़त्म। अनमने भाव से मैं उठी बिस्तर से लेनिन को वहीँ छोड़ दिया। और चाय बना के अनिमेष को दी।
       चाय पीते हुए मुझे लगता है कि दो प्यार करने वालों के बीच इतनी गहरी ख़ामोशी कैसे आ जाती है, के हमको लगता है कि वो मात्र आकर्षण था। इतने में अनिमेष नहा भी जाता है और पूजा घर में आता है जहाँ शिव फॅमिली की एक तस्वीर है, अनिमेष मुझे देखके मुँह बनाता है और पूजा करने लगता है..... अचानक मुझे लगता है कि पार्वती माता ने भी मुँह टेढ़ा किया, जिसे देखके शिव मुस्कराये.... और बोले देवी, फिक्र ना करो अभी हम है। सच में उस समय अनिमेष का टेढ़ा मुँह देख के मेरे होटों पे भी मुस्कान आ गई और मैं शिव हो गई, मानो लेनिन मुझे अब  मिल ही जायेगा।

शेष......
सोनिया