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Saturday, 8 December 2012

भूख होती तो उदर मे दबा लेती


भूख होती तो उदर मे दबा लेती
अश्रु होते तो नयन मे छुपा लेती
किन्तु यह प्रेम प्रियतम है तुम्हारा
इसको दबाऊँ मैं कहाँ?
इसको छुपाऊँ मैं कहाँ?
बेला की महक सा है ये
पाखी की चहक सा है,

जब भी तुम्हारा जिक्र हो
महकता है ये चहकता है ये
इस महक को, इस चहक को
बोलो छुपाऊँ अब कहाँ?
तुम ही बताओ ओ! सजन
इस प्रेम को लेकर जाऊँ मैं कहाँ? :)

3 comments:

  1. बिखेर दो सारे आकाश में....
    प्रेम भी भला कोई छिपाता है...

    अनु

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  2. क्या कहने ...
    बहुत ही खुबसूरत प्रेममयी रचना..
    मनभावन...
    :-)

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  3. जैसा कि एक गाना भी है - इश्क छुपता नहीं छिपाने से |
    तो जरूरत भी क्या है प्रेम छिपाने की !

    सादर

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