भूख होती तो उदर मे दबा लेती
अश्रु होते तो नयन मे छुपा लेती
किन्तु यह प्रेम प्रियतम है तुम्हारा
इसको दबाऊँ मैं कहाँ?
इसको छुपाऊँ मैं कहाँ?
जब भी तुम्हारा जिक्र हो
महकता है ये चहकता है ये
इस महक को, इस चहक को
बोलो छुपाऊँ अब कहाँ?
तुम ही बताओ ओ! सजन
इस प्रेम को लेकर जाऊँ मैं कहाँ? :)
अश्रु होते तो नयन मे छुपा लेती
किन्तु यह प्रेम प्रियतम है तुम्हारा
इसको दबाऊँ मैं कहाँ?
इसको छुपाऊँ मैं कहाँ?
बेला की महक सा है ये
पाखी की चहक सा है,
पाखी की चहक सा है,
जब भी तुम्हारा जिक्र हो
महकता है ये चहकता है ये
इस महक को, इस चहक को
बोलो छुपाऊँ अब कहाँ?
तुम ही बताओ ओ! सजन
इस प्रेम को लेकर जाऊँ मैं कहाँ? :)
बिखेर दो सारे आकाश में....
ReplyDeleteप्रेम भी भला कोई छिपाता है...
अनु
क्या कहने ...
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत प्रेममयी रचना..
मनभावन...
:-)
जैसा कि एक गाना भी है - इश्क छुपता नहीं छिपाने से |
ReplyDeleteतो जरूरत भी क्या है प्रेम छिपाने की !
सादर