Saturday 31 January 2015

कलयुग के केशव

"कलयुगी केशव"

बिछ गई गई है प्रेम गली में चौपड़
अरावली की तप्त कठोर श्रृंखलाओं
के सामने.......
तुम आज शकुनि से लगे
प्रेम की सत्ता के लिए
लज्जित हुई होंगी इसी गलियारे में
तमाम द्रौपदी!
और तुम्हारे पाखंड के बीच
होंठो पर खंड खंड हुई होगी
तुम्हारी कुटिल मुस्कान।

भोग के थाल में
और जूठन के ढेर में
चयन किया तुमने जूठन का!
पर "धीत" थी की संतुष्ट ना हुई।
देखो उगती थी जहाँ प्रेम की सरसों
वहां फूटे इस बरस मातम के अंकुर!
और तुम अपनी दर्द भरी तमाम
फैंटेसी के साथ
रुठने का बहाना करके
चौपड़ को अपने बस्ते में समेट
निकल पड़ोगे दूसरी द्रौपदी की खोज में।

क्योंकि तुम वाकिफ हो
ये कलयुग की सरकार है
जहाँ के राजा तुम हो।
तुम्हारा नाम "केशव" है
और अब तुम बचाते नहीं
दर्द के चश्मे में डूबा देते हो।
तो बिछाओ चौपड़
द्रौपदी तुम्हारी राह में है......
सोनिया गौड़

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