सन्नाटों ने शोर यूं ही न मचाया होगा
स्वर्ग से उत्तराखंड मे,
शहरीकरण ने जादू चलाया होगाजल-पूर्ति के लिए मीलो का सफर तय करती,
ग्राम्या की कमर ने भी बल खाया होगा॰
ज़िंदगी दवा की फरमाइश कैसे करती,
डाक्टर भी आने से कतराया होगा।
पहाड़ों मे बसे गाँव उजड़ रहे,शिलाओं ने भी अश्रु बहाया होगा।
यूं ही ना पलायित हुए होंगे नौजवान साथी
कुछ मजबूरी ने तो कुछ भूख ने कहर बरपाया होगा
आज जिधर देखो, उधर मरघट सी शांति फैली
शहर के चक्रव्यूह से भला कौन बच पाया होगा
बना बैठे अपना घरौंदा कंक्रीट के जंगल मे,
हरा-भरा पहाड़ जैसे इनके लिए पराया होगा।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआज के यथार्थ की बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआज की सच्चाई तो यही है....
ReplyDelete